15/05/2024

बन्दिनी (1963)

बन्दिनी / Bandini (1963)

शैली- ड्रामा-रोमांस-म्यूजिकल रिलीज- 1 जनवरी, 1963

निर्माता/निर्देशक- बिमल रॉय

लेखक- नबेन्दु घोष (पटकथा), पॉल महेन्द्र (संवाद)

गीतकार- शैलेन्द्र, गुलज़ार संगीतकार- एस. डी. बर्मन

संपादन– मधु प्रभावलकर  सिनेमैटोग्राफ़ी– कमल बोस

मुख्य कलाकार

  • नूतन – कल्याणी
  • अशोक कुमार – बिकाश घोष
  • धर्मेन्द्र – डॉक्टर देवेन्द्र (जेल का डॉक्टर)
  • तरुण बोस – जेलर
  • इफ़्तेख़ार – डिप्टी जेलर

संक्षेप में कहानी

कल्याणी (नूतन) जेल में एक क़ैदी है जिस पर खून का इल्ज़ाम है। जेल में एक बुढ़िया कैदी को तपेदिक (टीबी) का रोग लग जाता और कल्याणी स्वेच्छा से उसकी देखभाल करने को राज़ी हो जाती है। बुढ़िया का इलाज करते करते जेल के डॉक्टर देवेन्द्र (धर्मेन्द्र) को कल्याणी से प्यार हो जाता है लेकिन कल्याणी अपने अतीत के कारण उसके प्यार को ठुकरा देती है। देवेन्द्र जेल की नौकरी छोड़कर अपने घर वापस चला जाता है। उस जेल के जेलर महेश (तरुण बोस) और देवेन्द्र के घरेलू सम्बन्ध होने के कारण देवेन्द्र जेलर को अपने प्यार के बारे में बता देता है। देवेन्द्र के जाने के बाद जेलर कल्याणी को बुला भेजता है और कल्याणी से अपनी आप बीती सुनाने को कहता है। जब कल्याणी यह कहती है कि उसका अतीत इतना दु:ख भरा है कि वह बोल नहीं पायेगी तो जेलर उससे अपनी कहानी लिख कर देने को कहता है।

कल्याणी अपने द्वारा लिखी कहानी से बताती है कि उसके पिता एक गांव में पोस्टमास्टर थे और वह अपनी माँ और बड़े भाई को खो चुकी थी। उनके गांव में एक स्वतंत्रता सेनानी बिकाश घोष (अशोक कुमार) नज़रबन्द होता है और दोनों को आपस में प्यार हो जाता है। कल्याणी कल्यानी से लौटकर आने पर विवाह करने का वादा करके चला जाता है लेकिन फिर कभी वापस नहीं आता है। गांव वालों के अपने पिता को दिये जाने वाले तानों से तंग आकर एक दिन कल्याणी गांव छोड़कर शहर आ जाती है जहाँ उसे एक अस्पताल में नौकरानी की नौकरी मिल जाती है। उसे एक अध-पगली महिला की देखभाल का ज़िम्मा सौंपा जाता है जो उसे काफ़ी बुरा भला कहती रहती है। एक दिन उसकी उसी शहर में रहने वाली सखी आकर बताती है कि कल्याणी के पिता उसे खोजते हुये उसके घर आये थे और फिर जब अस्पताल आने के लिए निकले तो एक मोटर से टकरा गये हैं लेकिन जब तक वे दोनों कल्याणी के पिता को देखने के लिए दूसरे अस्पताल पहुँचती हैं तब तक वे दम तोड़ चुके होते हैं। कल्याणी जब वापस अपने अस्पताल आती है तो देखती है कि उस अध-पगली महिला का पति बिकाश ही है। क्रोध में आकर वह उस महिला को चाय में ज़हर मिलाकर पिला देती है जिससे उसकी मौत हो जाती है और कल्याणी अपना जुर्म क़बूल कर लेती है।

फ़िल्म वर्तमान में आती है और जेलर की कोशिशों से कल्याणी की रिहाई हो जाती है। जब कल्याणी जेलर से मिलने पहुँचती है तो जेलर उसको देवेन्द्र की माँ का ख़त पकड़ाता है जिसमें लिखा होता है कि देवेन्द्र की माँ ने कल्याणी को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया है। जेलर कल्याणी को देवेन्द्र के घर भेजने का इन्तज़ाम करता है और उसे जेल की वार्डन के साथ रेलवे स्टेशन (जो कि स्टीमर के स्टेशन के साथ ही है) के लिए रवाना कर देता है। वहाँ उसकी मुलाक़ात बहुत बीमार बिकाश से होती है और बिकाश का साथी उसे बताता है कि जब पार्टी का हुक़्म मिला कि उसे एक पुलिस अफ़सर के रिश्तेदार से मजबूरन शादी करनी पड़ेगी तो बिकाश ने देशप्रेम की ख़ातिर अपने प्रेम की आहूति दे दी। अंत में कल्यानी स्टीमर में बैठकर बिकाश के साथ चली जाती है।

गीत-संगीत

इस फ़िल्म के संगीतकार सचिन देव बर्मन तथा गीतकार शैलेन्द्र और गुलज़ार हैं। इस फ़िल्म में सात गीत हैं जिसमें एक ‘मोरा गोरा रंग लई ले’ गुलज़ार साहब ने लिखा है जबकि अन्य सभी शैलेन्द्र जी ने लिखे हैं।

  1. मोरा गोरा रंग लई ले (लता मंगेशकर)
  2. जोगी जब से तू आया (लता मंगेशकर)
  3. मत रो माता (मन्ना डे)
  4. ओ पंछी प्यारे (आशा भोसले)
  5. अब के बरस भेजी (आशा भोसले)
  6. मेरे साजन हैं उस पार (सचिन देव बर्मन)
  7. ओ जाने वाले हो सके तो (मुकेश)

सम्मान एवं पुरस्कार

  • राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (1963)- सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फ़िल्म- बिमल रॉय
  • फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (1964)- कुल 6 पुरस्कारों से सम्मानित हुई।
    • सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म- बिमल रॉय
    • सर्वश्रेष्ठ निर्देशक-  बिमल रॉय
    • सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री- नूतन
    • सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफ़ी- कमल बोस
    • सर्वश्रेष्ठ ध्वनि निर्देशन – डी. बिलिमोरिया
    • सर्वश्रेष्ठ कहानी – जरासन्ध

रोचक तथ्य

  • यह शायद अकेली ऐसी फ़िल्म है जिसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांव की साधारण महिलाओं का योगदान दर्शाया गया हो।
  • यह फ़िल्म बिमल रॉय द्वारा निर्देशित अंतिम फ़िल्म थी।
  • गीतकार के रूप में यह गुलज़ार की पहली फ़िल्म थी। उन्होंने इस फ़िल्म के लिए ‘मोरा गोरा रंग लई ले’ लिखा।

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