29/04/2024

बॉलीवुड की टॉप-10 फ़िल्में

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बॉलीवुड में हर साल सैकड़ों फ़िल्में रिलीज होती हैं और यह लगभग पिछले 70 सालों से चला आ रहा है। हज़ारों फ़िल्मों में से टॉप- 10 फ़िल्में चुनना बेहद मुश्किल काम है इसलिए दर्शकों की पसंद, कलाकारों का अभिनय और फ़िल्म का समकालीन समाज पर पड़े प्रभाव को देखते हुए यह सूची बनाई जा रही है। इस सूची में केवल साल 2000 के बाद रिलीज हुई फ़िल्मों को ही शामिल किया गया है।

साल 2000 के बाद बॉलीवुड की टॉप-10 मस्ट वॉच फ़िल्में / Top 1o Must Watch Films of Bollywood after 2000s

10. बजरंगी भाईजान / Bajrangi Bhaijaan (2015)

निर्देशक- कबीर ख़ान लेखक- कबीर ख़ान, केवी बिजेन्द्र प्रसाद

मुख्य कलाकार– सलमान ख़ान, करीना कपूर, नवाज़ुद्दीन सिद्दिक़ी, हर्शाली मल्होत्रा, मेहर विज, ओम पुरी, शरत सक्सेना आदि

विशेष नोेट- बजरंगी भाईजान सलमान ख़ान की ही नहीं, बॉलीवुड की सबसे अच्छी फ़िल्मों में से एक मानी जाती है। इसमें सलमान का चरित्र पवन चतुर्वेदी एक गूंगी-बहरी बच्ची को उसके देश ‘पाकिस्तान’ पहुंचाता है। 63वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार में इसे ‘सम्पूर्ण मनोरंजन करने वाली सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय फ़िल्म का पुरस्कार’ (National Film Award for Best Popular Film Providing Wholesome Entertainment) मिला था। 2016 में सर्वश्रेष्ठ कहानी का फिल्मफेयर अवार्ड भी दिया गया। साथ ही इसे 2015 में चीन के डबलन फिल्म अवार्ड्स में सर्वश्रेष्ठ विदेशी फिल्म के लिए भी नामांकित किया गया था। 78 वर्षीय के.वी. विजयेंद्र प्रसाद ने इस फ़िल्म की कहानी लिखी है जो दक्षिण भारत के सुपरहिट निर्देशक एस.एस. राजमौली (बाहुबली के निर्देशक) के पिता हैं।

9. चक दे! इंडिया / Chak De! India (2007)

निर्देशक- शिमित अमीन लेखक- जयदीप साहनी

मुख्य कलाकार– शाहरुख ख़ान, विद्या मालवड़े, शिल्पा शुक्ला, सागरिका घाटगे, चित्राशी रावत, विवान भटेना, मोहित चौहान, विभा छिब्बर आदि

विशेष नोट- हॉकी की पृष्‍ठभूमि में बनी ‘चक दे इंडिया’ में शाहरुख़ ख़ान ने अपनी रोमांटिक छवि से हटकर एक ऐसे हॉकी कोच की भूमिका निभाई है जिसका एकमात्र लक्ष्य अपनी टीम को विश्व कप जिताना है। शाहरुख़ ख़ान ने एक कलंकित खिलाड़ी और कठोर प्रशिक्षक की भूमिका को बखूबी निभाया है। वे शाहरुख़ ख़ान न लगकर कबीर ख़ान लगे हैं। कई दृश्यों में उन्होंने अपने भाव मात्र आँखों से व्यक्त किए हैं। कलंक धोने की उनकी बेचैनी उनके चेहरे पर दिखाई देती है। शिमित का निर्देशन बेहद शानदार है। एक चुस्त पटकथा को उन्होंने बखूबी फ़िल्माया है। वे हॉकी के जरिये दर्शकों में राष्ट्रप्रेम की भावनाएँ जगाने में कामयाब रहे। एक सीन में मैच के पूर्व जब ‘जन-गण-मन’ की धुन बजती है, तो थिएटर में मौजूद दर्शक सम्मान में खड़े हो जाते हैं। चक दे इंडिया को ‘मनोरंजन से भरपूर सबसे लोकप्रिय फ़िल्म’ का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला है। यदि आपने ‘चक दे इंडिया’ नहीं देखी है तो एक बार ज़रूर देखनी चाहिए।

8. ओएमजी: ओह माय गॉड / OMG – Oh My God! (2012)

निर्देशक- उमेश शुक्ला लेखक– उमेश शुक्ला, सौम्या जोशी, भावेश मंडिलया

मुख्य कलाकार– परेश रावल, अक्षय कुमार, मिथुन चक्रवर्ती, गोविन्द नामदेव, ओमपुरी, महेश मंजरेकर, पूनम झावर आदि

विशेष नोट- गुजराती नाटक ‘कांजी विरुद्ध कांजी’ और हिंदी नाटक ‘किशन वर्सेस कन्हैया’ पर यह फिल्म आधारित है। कांजी मेहता के किरदार से इतनी गंभीर बातें बेहद हल्के-फुल्के तरीके से फिल्म में दिखाई गई है। मोटे तौर पर सोचा जाए तो भगवान को मानना भी एक तरह का अंधविश्वास है लेकिन फिल्म में भगवान को भी दिखाया गया है और भगवान यहाा खुद खुश नहीं है कि उनके नाम पर किस तरह अंधविश्वास फैल चुका है। कांजी भाई की भूकंप में दुकान बरबाद हो जाती है और इंश्योरेंस कंपनी इसे ‘एक्ट ऑफ गॉड’ करार देते हुए हर्जाना देने से इंकार कर देती है। कांजी भाई भगवान के खिलाफ मुकदमा दायर करते हैं कि यदि उन्होंने उनकी दुकान बरबाद की है तो उन्हें हर्जाना देना पड़ेगा। कोर्ट कांजी भाई को कहती है कि वे भगवान होने का सबूत दें। कांजी भाई सभी धर्मों के पंडित, मौलवी और पादरी को लीगल नोटिस भेजते हैं। फिल्म को आलोचकों से काफी प्रशंसा मिली और इसे एक ब्लॉकबस्टर सफलता मिली। तेलुगु में बने फिल्म के रीमेक में मुख्य भूमिका में गोपाल गोपाल, वैंकटेश और पवन कल्याण आदि हैं। फिल्म को अनुसंधान दस्तावेजीकरण व सामाजिक विज्ञान संस्थान द्वारा दूसरे IRDS हिंदी फिल्म पुरस्कारों के दौरान सामाजिक चिंता पर सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। फिल्म ने 60 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ रूपांतरित पटकथा के लिए पुरस्कार जीता है।

7. ब्लैक फ़ाइडे / Black Friday (2007)

लेखक/निर्देशक- अनुराग कश्यप
मुख्य कलाकार– के.के. मेनन, पवन मल्होत्रा, आदित्य श्रीवास्तव, इम्तियाज़ अली, प्रतिमा काज़मी, ज़ाकिर हुसैन आदि

विशेष नोट- 1993 के बॉम्बे बम धमाकों के बारे में हुसैन जैदी की एक किताब ‘ब्लैक फ्राइडे : द ट्रू स्टोरी ऑफ़ द बॉम्बे बम ब्लास्ट’ पर आधारित इस फ़िल्म में उन घटनाओं का ज़िक्र किया गया है जो धमाकों और उसके बाद की पुलिस जाँच की वजह बनीं। फिल्म के एक सीन में मुंबई धमाकों के पीछे उस कहानी का जिक्र है कि कैसे दाऊद ने मुंबई की बर्बादी का आदेश दिया था? दरअसल, बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद तक दाऊद खामोश था। कहते हैं कि दाऊद मुंबई को बेहद प्यार करता था। कुछ किताबों और रिपोर्ट्स में भी इसका जिक्र है। सेंसर ने भी फिल्म के कंटेट को लेकर इसे शुरुआती दो साल तक रिलीज नहीं होने दिया था। इसे बाद में रिलीज किया गया था। फिल्म में बाबरी के बाद का माहौल दिखाया गया था। इसके निर्माता अरिंदम मिश्रा थे। फिल्म को महज 70 दिनों में बनाया गया था। मुंबई और दुबई में शूटिंग हुई थी। फिल्म को बॉक्स ऑफ़िस सफलता तो नहीं मिली लेकिन आलोचनात्मक प्रशंसा बहुत मिली। इसने लॉस एंजिल्स के भारतीय फिल्म महोत्सव में ग्रैंड ज्यूरी पुरस्कार जीता और लोकार्नो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन लेपर्ड पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। फ़िल्म निर्माण के दृष्टिकोण और तकनीकी तौर पर आज भी ‘ब्लैक फ़ाइडे’ बेहद सक्षम मानी जाती है।

6. रंग दे बसंती / Rang De Basanti (2006)

निर्देशक- राकेश ओमप्रकाश मेहरा लेखक– राकेश ओमप्रकाश मेहरा, कमलेश पांडे, रेन्सिल डिसिल्वा

मुख्य कलाकार– आमिर ख़ान, सिद्धार्थ, अतुल कुलकर्णी, कुणाल कपूर, शरमन जोशी, सोहा अली ख़ान, वहीदा रहमान, माधवन आदि

विशेष नोट- 4 नेशनल अवार्ड से सम्मानित ‘रंग दे बसंती’ की कहानी दो अलग-अलग समय अवधि पर आधारित है- पहली कहानी समकालीन भारत में है और आज कल के दोस्तों के इर्द गिर्द घूमती है और दूसरी कहानी स्वतंत्रता पूर्व भारत में है जो चंद्रशेकर आज़ाद, सरदार भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के इर्द गिर्द घूमती है। इस फिल्म के बार में मीडिया पर काफी चर्चा हुई और कहा जाता है कि भारतीय समाज पर इसकी अभूतपूर्व छाप पड़ी है। फिल्म का उपशीर्षक है- अ जनरेशन अवेकन्स। इस फिल्म के बाद से भारतीय युवाओं ने कई मोर्चों पर सार्थक प्रदर्शन किये। रंग दे बसंती की तरह इंडिया गेट पर मोमबत्ती जला के लोगों ने विभिन्न केसों में अदालत के फैसलों के खिलाफ मोर्चा निकाला और शायद स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार इस तरह से शांतिप्रिय जुलूस निकाल के उच्च न्यायालय को और सरकार को ये मुकदमे फिर से खोलने पर मजबूर कर दिया। इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए 2006 बाफ़्टा (BAFTA) पुरस्कार में नामांकित किया गया था। ‘रंग दे बसंती’ को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म वर्ग में गोल्डन ग्लोब पुरस्कार और अकादमी पुरस्कार के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया। संगीतकार ए.आर. रहमान को भी दो अकादमी पुरस्कार नामांकन मिले।

5. ए वेडनेसडे / A Wednesday! (2008)

लेखक/निर्देशक- नीरज पांडे
मुख्य कलाकार– नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर, जिम्मी शेरगिल, दीपल शॉ, आमिर बशीर, आलोक नरुला, रोहिताश्व गौड़, वीरेन्द्र सक्सेना आदि

विशेष नोट- लेखक-निर्देशक नीरज पांडे की यह पहली फ़िल्म है। ‘ए वेडनेसडे’ कहानी है एक बुधवार को मुंबई में दोपहर 2 से 6 बजे के बीच होने वाली घटनाओं की। ऐसी घटनाएँ जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है। मुंबई पुलिस कमिश्नर प्रकाश राठौर (अनुपम खेर) को फोन आता है कि वे चार व्यक्तियों को छोड़ दे वरना मुंबई के कई स्थानों पर उसने बम लगा रखे हैं और उनके जरिए वो विस्फोट कर देगा। प्रकाश पहले इसे मजाक समझते हैं, लेकिन फिर उन्हें शक होता है। एक बम पुलिस स्टेशन के सामने स्थित पुलिस हेडक्वार्टर पर प्रकाश को मिलता है। प्रकाश उन लोगों में से नहीं है जो आसानी से हार मान लेते हैं। वे अपने श्रेष्ठ साथियों की टीम बनाते हैं और सारे संसाधनों का उपयोग करने का निश्चय करते हैं। फिल्म में दो शानदार अभिनेताओं को साथ देखना एक आनंददायक अनुभव है। नसीरुद्दीन शाह ने पहले भी कई फिल्मों में शानदार अभिनय किया है। डेढ़ घंटे की इस फिल्म में न कोई गाना है, न कोई मसाला है और न ही फालतू दृश्य।

4. तारे ज़मीन पर / Taare Zameen Par (2007)

निर्देशक- आमिर ख़ान लेखक– अमोल गुप्ते

मुख्य कलाकार– आमिर ख़ान, दर्शील शफ़ारी, टिस्का चोपड़ा, विपिन शर्मा, सचेत इंजीनियर, तनय छेड़ा आदि

विशेष नोट- इस फ़िल्म में एक बच्चे की कहानी दिखाई गई है, जिसे पढ़ने-लिखने में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और उसके माता-पिता उससे परेशान होकर बोर्डिंग स्कूल में डाल देते हैं, जहाँ उसकी मुलाकात एक ऐसे गुरु (आमिर ख़ान) से होती है, जो उसकी चित्रकारी की क्षमता पहचान कर उसे उस क्षेत्र में आगे बढ़ने में सहायता करते हैं। इस फ़िल्म के माध्यम से यह बताने की भी कोशिश की गई है कि अपने बच्चे की गतिविधयों को परखें कि उसे किस चीज में रुचि है, नाकि उस पर किसी चीज को करने के लिए दबाव बनाएं। फिल्म में यह भी बताया गया है कि एक शिक्षक को अपने छात्र के प्रति सच्ची निष्ठा और प्रेम के साथ व्यवहार करना चाहिए जिससे उनके छात्र अपनी हर तकलीफों को अपने शिक्षक को उसके साथ साझा कर सकें। आमिर ख़ान के निर्देशन में बनी ये पहली फ़िल्म है और आमिर ने ये साबित कर दिया है कि वो अभिनेता के साथ-साथ एक बहुत ही अच्छे निर्देशक भी हैं। फ़िल्म की सबसे अच्छी बात है कि कहानी बहुत ही दमदार है। फ़िल्म के हर पहलू को बहुत ही उम्दा तरीके से बनाया गया है। 3 नेशनल अवार्ड, 4 फ़िल्मफेयर अवार्ड सहित ‘तारे ज़मीन पर’ को सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म वर्ग में ऑस्कर अवार्ड के लिए भारत की आधिकारिक प्रविष्टि के रूप में चुना गया।

3. अंधाधुन / Andhadhun (2018)

निर्देशक- श्रीराम राघवन लेखक- श्रीराम राघवन, हेमन्त एम राव, पूजा सूर्ती, अर्जित विश्वास, योगेश चंदेकर

मुख्य कलाकार– आयुष्मान खुराना, तब्बू, राधिका आप्टे, अनिल धवन, ज़ाकिर हुसैन, अश्वनी कलेस्कर, मानव विज आदि

विशेष नोट- एक नेत्रहीन पियानिस्ट के रूप में आयुष्मान ने बेहतरीन अभिनय किया है। यह फिल्म 2010 में आई ऑलिवर ट्रीनर की फ्रेंच शॉर्ट फिल्म ‘लैकोकरों’ से प्रेरित है। पूरी फिल्म आपको कहानी से बांधे रखती है और आप का दिमाग फिल्म में डूबा रहता है। फिल्म का स्क्रीनप्ले बेहतरीन है और कहानी के ट्विस्ट इसे दर्शकों के लिए रोमांचक बना देते हैं। क्लाइमेक्स से पहले प्री क्लाइमेक्स उससे पहले एंटी क्लाइमेक्स, पता ही नहीं चलता कि ट्विस्ट एंड टर्न का ऊँट किस करवट बैठेगा। फिल्म आपके साथ खेलती है फिल्म में नाच गाना आइटम डांस वगैरह नहीं है। फिल्म का अंत अगर आपको अधूरा लगे तो समझ लीजिए, जैसा कि राधिका कहती है “कुछ चीजें इसलिए पूरी हैं क्योंकि वो अधूरी हैं, उसमें उंगली मत करना”। फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अच्छा प्रदर्शन किया। 66वां सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्‍म का राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार अपने नाम किया है। साथ ही आयुष्मान खुराना को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (संयुक्त) का नेशनल अवार्ड मिला।

2. ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा / Zindagi Na Milegi Dobara (2011)

निर्देशक- ज़ोया अख्तर लेखक– ज़ोया अख्तर, रीमा कागती

मुख्य कलाकार– अभय देयोल, ऋतिक रोशन, फ़रहान अख़्तर, कैटरीना कैफ़, कल्की कोच्लीन, नसीरुद्दीन शाह, दीप्ति नवल आदि

विशेष नोट- जिन्दगी में दोस्तों की जगह, उनकी अहमियत और उनकी जरूरत को निर्देशिका जोया अख्तर ने बखूबी पर्दे पर उतारा है। फिल्म की कहानी सीधी और सिंपल होने के साथ रोमांचक भी है। तीन दोस्त अर्जुन (ऋतिक रोशन), इमरान (फ़रहान अख्तर) और कबीर (अभय देओल) एक रोड़ ट्रिप प्लान करते हैं। कबीर अपनी गर्लफ्रेंड नताशा (कल्कि कोचलिन) से सगाई करता है और फिर अपने दोस्तों के साथ स्पेन घूमने के लिए निकल जाता है। जब तीनों दोस्त कॉलेज में होते हैं तब उन्होंने सोचा होता है कि वह ऐसी एक यात्रा करेंगे लेकिन किसी वजह से उस समय वह घूमने नहीं जा पाते सो कॉलेज खत्म होने के बाद अपनी इच्छा पूरी करने वह स्पेन के लिए निकल पड़ते हैं। फिल्म में कई ऐसे संवाद हैं जिनसे आपके चेहरे पर मुस्कान आ जाएगी। ऋतिक रोशन, अभय देओल और फरखान अख्तर ने बहुत ही बेहतरीन अदाकारी की है। अगर तीनों के अभिनय को देखा जाए तो ऐसा लगता ही नहीं कि वह एक्टिंग कर रहे हैं। फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो पल भर में आपको हंसने और पल भर में आपको रोने के लिए विवश कर देंगे। इस फिल्म में स्पेन के मशहूर ‘ला टोमेटिना’ फेस्टिवल की झलक और वहाँ के कई मशहूर जगहों को फिल्माया गया है। 2 नेशनल अवार्ड के अलावा फ़िल्म ने ढेरों अवार्ड्स अपने नाम किये हैं। फ़िल्म व्यावसायिक रूप से भी सुपर हिट रही।

1. दंगल / Dangal (2016)

निर्देशक- नितेश तिवारी लेखक– नितेश तिवारी, पीयूष गु्प्ता, श्रेयष जैन, निखिल महरोत्रा

मुख्य कलाकार– आमिर ख़ान, साक्षी तंवर, फ़ातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, जायरा वसीम, अपारशक्ति खुराना, गिरिश कुलकर्णी आदि

विशेष नोट- दंगल की कहानी एक ऐसे पिता और उसके सपने की है, जो अपने सपने को पूरा करने के लिए बेटे की इच्छा रखता है। लेकिन उसके इस सपने को सच का जामा बेटे की जगह बेटियां पहनाती हैं। यह फिल्म पहलवान महावीर सिंह फोगाट के जीवन से प्रेरित है। बिलाली गांव में रहने वाला महावीर देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना चाहता है। यह आमिर ख़ान की सबसे दमदार फिल्म है। वजनी महावीर फोगाट के रूप में उनका कायांतरण दर्शनीय है। पिता, कोच और अपने सपने साकार की बेचैनी दिल में लिए सालों से जी रहे शख्स की भूमिका को उन्होंने जीवंत बना दिया है। पर्दे पर आमिर ख़ान नहीं, महावीर फोगाट नजर आते हैं। पहलवानों की बॉडी लैंग्वेज और हरियाणवी लहजे को जिस सूक्ष्मता के साथ पकड़ा है वो काबिल-ए-तारीफ़ है। अपने किरदार को उन्होंने धीर-गंभीर लुक दिया है। उन्होंने नए कलाकारों पर हावी होने के बजाय उन्हें भी उभरने का अवसर दिया है। यह बॉलीवुड की अब तक सबसे अधिक कमाई (लगभग 380 करोड़ रुपये सिर्फ भारत में) करने वाली फ़िल्म हैं। दंगल दुनिया भर में 2016 की 30वीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई और अब तक की पांचवीं सबसे ज्यादा कमाई वाली गैर-अंग्रेजी फिल्म है। 62वें फिल्मफेयर अवार्ड्स में, इसने सर्वश्रेष्ठ फिल्म और सर्वश्रेष्ठ अभिनेता सहित चार पुरस्कार जीते।

11-15:- मुन्ना भाई एम.बी.बी.एस, गैंग्स ऑफ़ वासेपुर, इंग्लिश विंग्लिश, पिंक, ब्लैक।

विशेष उल्लेख
तलवार, पीके, ओमकारा, पेज 3, तनु वेड्स मनु रिटर्न्स, न्यूटन, मसान, तुम्बाड, सेक्शन 375, लक्ष्य, कहानी, बदला, बधाई हो, स्पेशल 26, बेबी, मक़बूल, पीकू, बाजीराव मस्तानी, दृश्यम, द ताशकेंट फ़ाइल्स, अलीगढ़, जब वी मेट, शाहिद, मांझी, पान सिंह तोमर, दिल चाहता है, रांझणा, परिणीता, देवदास, द लंच बॉक्स, हेरा फेरी, लगे रहो मुन्ना भाई, खोसला का घोसला, अगली, गुलाल, जॉली एलएलबी, लगान, स्वदेस, हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी, गो गोआ गोन, जॉनी गद्दार। {अपडेट दिनांक:- 29 जुलाई 2020}

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विशेष नोट:- यह सूची/रेटिंग इंटरनेट पर उपलब्ध स्रोतों एवं बॉलीवुड ख़ज़ाना टीम के गहन विश्लेषण के बाद तैयार की गयी है। यहाँ पर आधुनिक बॉलीवुड की 21वीं शताब्दी में रिलीज़ अर्थात वर्ष 2000 से रिलीज फ़िल्मों को ही लिया गया है। इस सूची में शामिल फ़िल्म का बॉक्स ऑफ़िस पर हिट होना आवश्यक नहीं है। समय और दर्शकों की पसंद के अनुसार यह सूची अपडेट होती रहती है।

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