08/05/2024

फ़िल्म समीक्षा: अमर सिंह चमकीला

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रणबीर कपूर की ‘रॉकस्टार’ वाले लेखक-निर्देशक इम्तियाज अली फॉर्म में लौट आये हैं। जी हां दिलजीत दोसांझ और परिणीति चोपड़ा से अभिनीत ‘अमर सिंह चमकीला’ देखने के बाद सबसे पहले यही बात दिमाग में आई। 80 के दशक में पंजाब के वर्ल्ड फेमस पॉप सिंगर रहे अमर सिंह संडीला उर्फ ‘चमकीला’ की ये बायोपिक है। एआर रहमान का संगीत है, मोहित चौहान की आवाज है। दिलजीत-परिणति का अभिनय है और चमकीला के संघर्ष और चमकने की कहानी है। इस फिल्‍म में चमकीला के ‘एल्विस ऑफ पंजाब’ बनने के सफर को दिखाया गया है।
दलित सिख समाज का युवक अमर सिंह गायक बनना चाहता है लेकिन उसे जूते की फैक्ट्री में काम करना पड़ रहा है। उसे अपनी ख्वाहिश पूरी करने का एक मौका मिलता है तो वह लपक लेता है। चूंकि उसका बचपन ग्रामीण माहौल में बीता है तो उसने जिस तरह की बातों पर समाज को हंसते देखा, उसी तरह के बोल लिखकर गाना बजाना सीखा है। जनता को उसके गाने बहुत पसन्द आते हैं। चमकीला तरक्की करता जाता है। इस सफर में उसकी पत्नी अमरजोत (परिणीति चोपड़ा) भी पूरा साथ देती है। एक तरफ चमकीला को दौलत-शोहरत खूब मिलती है लेकिन दूसरी तरफ तथाकथित सभ्य समाज का एक तबका उसके गाने को अश्लील समझता है और वे उसे बंद न करने पर जान से मारने की धमकी देता है। धमकी के डर से चमकीला अश्लील गाने बन्द करके भजन भी गाता है, और भजन भी बहुत बड़े हिट होते हैं लेकिन जनता को अश्लील गाने ही चाहिए। एक कलाकार होने के नाते चमकीला जनता की फरमाइश पूरी करता है। देश विदेश में सुपरस्टार अमिताभ बच्चन जैसी प्रसिद्धि पा चुके चमकीला को उसके न चाहने वाले या उसकी लोकप्रियता से ईर्ष्या करने वाले कुछ लोग एक दिन चमकीला और उसकी पत्नी अमरजोत की गोली मारकर हत्या कर देते हैं।

‘अमर सिंह चमकीला’ की समीक्षा

अमर सिंह चमकीला और अमरजोत सिंह (वास्तविक)
अमरजोत सिंह और अमर सिंह चमकीला (वास्तविक)

‘अमर सिंह चमकीला’ मार्मिक है, उत्तेजक है और किसी कविता की तरह है, जो ज्वलंत भावनाओं को जगाती है। फिल्‍म में उद्देश्य भी है, सहानुभूति भी। यह बायोपिक आपको खुद के अंदर झांकने पर भी मजबूर करती है। फिल्‍म देखते हुए मन में कई सवाल उठते हैं। मसलन, क्या हम अस्तित्व के गुलाम हैं? कला क्या है? यह कौन तय करता है कि कला के रूप में क्या सही है और क्‍या गलत? क्या सम्मान के बिना प्रसिद्धि मायने रखती है?  निर्देशक ने चमकीला को हीरो बनाने की कोशिश नहीं की है, कलाकार अंदर से कैसा होता है, ये बताने की कोशिश की है, जो इस फ़िल्म का सबसे मजबूत पक्ष है। फ़िल्म में चमकीला के कई संवाद बहुत गहरा अर्थ रखते हैं। हालांकि चमकीला अश्लील गाने गाता है लेकिन न फ़िल्म अश्लील है और न ही चमकीला का चरित्र। चमकीला बस वही करता है जो जनता को पसंद है।

इम्तियाज अली उन निर्देशकों में से हैं, जिन्‍होंने पर्दे पर प्रेम और खुद की तलाश को सहज भाव से फिल्‍माया है। वो ऐसी फिल्‍में बनाने के लिए जाने जाते हैं जो दिल की बात करती हैं और सीधे दिलों में उतरती हैं। इस बार ‘अमर सिंह चमकीला’ के जरिए उन्‍होंने एक अलग राह चुनी है। वह मोरल पुलिसिंग यानी नैतिक तौर पर सही-गलत, जातिगत भेदभाव, सामाजिक बदमाश‍ियों और पूर्वाग्रह में डूबी एक त्रासदी में गहराई से उतरते हैं।

अभिनय एवं अन्य तकनीकी पक्ष

दिलजीत दोसांझ मुख्य भूमिका में शानदार हैं और अपने मंत्रमुग्ध कर देने वाले प्रदर्शन से उत्साह बढ़ाते हैं चूँकि दिलजीत पेशे से एक गायक हैं, इसलिए उनका प्रदर्शन बहुत स्वाभाविक लग रहा था। उन्होंने विभिन्न भावनाओं को आश्चर्यजनक तरीके से चित्रित किया। दिलजीत की पत्नी के रूप में परिणीति चोपड़ा ने बहुत अच्छा काम किया है। यह भूमिका परिणीति के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है, यह देखते हुए कि वह एक प्रसिद्ध गायक के साथ अभिनय कर रही हैं (गाने दिलजीत और परिणीति की आवाज़ के माध्यम से लाइव रिकॉर्ड किए जाते हैं)। एक्ट्रेस ने दिलजीत के साथ तालमेल बिठाने की पूरी कोशिश की। फिल्म में ज्यादातर लाइव परफॉर्मेंस दिखाए गए हैं। इस काम में सिंगर दिलजीत के साथ परिणीति चोपड़ा ने बराबर मदद की है।

दिग्गज एआर रहमान ने शानदार काम किया और वह दिलजीत के बाद अमर सिंह चमकीला के दूसरे स्तंभ हैं। मैदान के लिए उनका काम अब एक तरफ दिल जीत रहा है, और थोड़े ही अंतराल में उन्होंने एक बार फिर अपना जादू बिखेर दिया है। फिल्म के गाने लाजवाब हैं। मोहित चौहान और दिलजीत की आवाज में ये गाने कानों को अच्छा फील देते हैं। म्यूजिक के लिए ए आर रहमान ने जो किया है वो अलग ही है। स्टूडियो के बिना तैयार किया गया म्यूजिक जैसा सुनाई देता है, वो भी देसी टच के साथ।

निर्देशक इम्तियाज अली ने अमर सिंह चमकीला की संगीत यात्रा को चित्रित करने में ठोस काम किया। उन्होंने गायक से जुड़ी घटनाओं को भी इसमें शामिल किया और इम्तियाज ने किसी का पक्ष नहीं लिया। फिल्म के साथ वास्तविक जीवन के फुटेज दिखाने का विकल्प एक उत्कृष्ट विचार है, और यह हमें अमर सिंह चमकीला के साथ बेहतर ढंग से जुड़ने में मदद करता है।

देखें या न देखें

अच्छा हुआ ये फ़िल्म ओटीटी (नेटफ्लिक्स) पर रिलीज हुई वरना सिनेमाहॉल में होती तो फ्लॉप हो जाती और निर्देशक के मत्थे पर अच्छी फिल्म बनाने के बावजूद फ़्लॉप का ठप्पा लग जाता। अच्छा सिनेमा देखने वालों को ये फ़िल्म देखनी चाहिए। रेटिंग– 3.5* /5 ~गोविन्द परिहार (22.04.24)

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