29/04/2024

बॉलीवुड की टॉप-10 अंडर-रेटेड फ़िल्में

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बॉलीवुड की टॉप-10 अंडर-रेटेड फ़िल्में / Top 1o Underrated Films of Bollywood

10. आई एम कलाम / I Am Kalam (2011)

निर्देशक- नील माधव पंडा लेखक- संजय चौहान

मुख्य कलाकार– हर्ष मायर, गुलशन ग्रोवर, हसन साद, पितोबश त्रिपाठी, मीणा मीर, संजय चौहान, गरिमा भारद्वाज आदि

विशेष नोट- ‘आई एम कलाम’ एक छोटे बच्चे की प्रेरणादायक कहानी है जो असंभव से दिखने वाले ख्वाब को हकीकत में बदलने की कोशिश करता है। कहानी एक ग़रीब राजस्थानी लड़के छोटू जो भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से प्रेरित है, के चारों और घूमती है। इस छोटू के चरित्र को हर्ष मायर, जो दिल्ली की एक झुग्गी बस्ती में रहने वाला लड़का है, ने निभाया है। इसे विभिन्न फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया गया और इसने कई पुरस्कार और सम्मान अपने नाम किये। 5 अगस्त 2011 को आई एम कलाम भारत के सिनेमाघरों में प्रदशित की गयी। 29 जुलाई, 2011 को एक विशेष स्क्रीनिंग दिल्ली स्थित डॉ. एपीजे कलाम के आवास पर आयोजित की गयी ताकि उनका आशीर्वाद लिया जा सके। अमूमन भारत में देखा जाता है कि बच्चों पर बनी फिल्मों को लोग सिनेमाघरों में जाकर देखना पसंद नहीं करते। “चिल्लर पार्टी” के साथ भी ऐसा ही हुआ लेकिन यह फिल्म सिर्फ बच्चों के लिए नहीं बल्कि उन सभी के लिए है जो समाज में अनाथ और गरीब बच्चों के लिए सहानुभूति रखते हैं। स्माइल फाउंडेशन जो कि बच्चों के कल्याण के लिए एक गैर-सरकारी संगठन है उसने फिल्म के जरिए बाल भावनाओं को इस तरह पेश किया है कि यह आपके दिल को छू लेगी।

9. 1971 / 1971 (2007)

निर्देशक- अमृत सागर लेखक- पीयूष मिश्रा

मुख्य कलाकार– मनोज बाजपेयी, रवि किशन, चित्तरंजन गिरि, कुमुद मिश्रा, मानव कौल, दीपक डोबरियाल, पीयूष मिश्रा, विवेक मिश्रा आदि

विशेष नोट- टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ बनाने वाले रामानन्द सागर के बैनर तले बनी इस फ़िल्म 1971 ने दो राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं। हिंदी वॉर ड्रामा फिल्म ‘1971’- भारत-पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 में हुई जंग के बाद भारतीय सैनिकों के युद्धबंदी बनाए जाने की सच्ची कहानी पर आधारित है। फिल्म 9 मार्च, 2007 को रिलीज हुई थी। देशभक्ति से ओत-प्रोत इस फ़िल्म में सभी कलाकारों ने यादगार अभिनय किया है। यह फ़िल्म यूट्यूब पर उपलब्ध है आप कभी भी देख सकते हैं।

8. सेक्शन 375 / Section 375 (2019)

निर्देशक- अजय बहल लेखक- मनीष गुप्ता

मुख्य कलाकार– अक्षय खन्ना, रिचा चड्डा, मीरा चोपड़ा, राहुल भट्ट, श्रीस्वरा, संध्या मृदुल, किशोर कदम, कृतिका देसाई आदि

विशेष नोट- ‘सेक्शन 375’ एक कोर्ट रूम ड्रामा है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 काफी संवेशनशील और पेचीदा मुद्दा है। लेकिन इस मुद्दे को गंभीरता के साथ उठाने की कोशिश की है निर्देशक ने। फिल्म धारा 375 के दुरुपयोग पर केंद्रित है, जिसे भारत में बलात्कार विरोधी कानून के रूप में भी जाना जाता है। फिल्म में एक संवाद है जहां वकील तरुण सलूजा (अक्षय खन्ना) कहते हैं कि- ये केस सटीक उदाहरण है कि कैसे एक महिला उसी कानून का इस्तेमाल एक हथियार के तौर पर करती है, जो उसकी सुरक्षा के लिए बनाया गया था। सेक्शन 375 फ़िल्म के केंद्र में एक सवाल रहता है- कानून बड़ा या न्याय? इस सवाल का साथ देती है- बलात्कार के दृश्य की ओर संकेत करती हुई कहानी। फ़िल्म सिस्टम में चले आ रहे कुछ बेजा हरकतों पर हमारा ध्यान ले जाती है। इसमें सबसे पहले आता है किसी भी रेप पीड़िता के साथ की गई पुलिस का व्यवहार और मेडिकल चेकअप। पीड़िता के साथ दिखाई जाने वाली विशेष संवेदनशीलता की ज़रूरत पर बार-बार बात की गई है।

7. दसविदानिया / Dasvidaniya (2008)

निर्देशक- शंशान्त शाह लेखक- अरशद सैयद

मुख्य कलाकार– विनय पाठक, सरिता जोशी, नेहा धूपिया, रजत कपूर, रणवीर शौरी, ब्रिजेन्द्र काला, सौरभ शुक्ला, सुचित्रा पिल्लई, पूरबी जोशी, गौरव गेरा आदि

विशेष नोट- फिल्म का नाम, मुख्य किरदार द्वारा मृत्यु से पहले की जाने वाली दस चीजों की सूची से निकला एक वाक्य है और रूसी वाक्यांश (दो सविदानिया) से बना हुआ है, जिसका अर्थ है “अलविदा”। यह फ़िल्म हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित ‘आनंद’ (Anand) की याद दिलाती है, जिसमें राजेश खन्ना को पता चल जाता है कि कुछ दिनों बाद उनकी मौत होने वाली है। मरने के पहले वे अपनी जिंदगी का पूरा आनंद उठाते हैं। शशांत शाह की ‘दसविदानिया’ की कहानी भी इससे मिलती-जुलती है। फिल्म के मुख्य किरदार को पता है कि उसके पास ज्यादा समय नहीं है और मरने के पहले वह दस ख्वाहिशों को पूरा करना चाहता है। यह फिल्म देखने लायक इसलिए है क्योंकि इसमें आम आदमी की भावनाओं को अच्छी तरह से व्यक्त किया गया है। वह हमारे जैसा ही लगता है और उसके दर्द को दर्शक अच्छी तरह महसूस कर सकते हैं।

6. अलीगढ़ / Aligarh (2016)

निर्देशक- हंसल मेहता लेखक- अपूर्व असरानी

मुख्य कलाकार– मनोज बाजपेयी, राजकुमार राव, आशीष विद्यार्थी, ईश्वक सिंह, दिलनाज़ ईरानी, सुमन वैद्य, नूतन सूर्या आदि

विशेष नोट- यह कहानी श्रीनिवास रामचन्द्र सिरस के जीवन पर आधारित है, जिसे नौकरी से उनके समलैंगिक होने के कारण हटा दिया गया था। वास्तविक घटनाओं को आधार बनाकर फिल्म बनाई गई है कि किस तरह से समलैंगिक व्यक्ति को समाज हिकारत से देखता है और उसे नौकरी से हटा दिया जाता है मानो वह अपराधी हो। मनोज बाजपेयी ने अपने अभिनय के उच्चतम स्तर को छूआ है। उनका अभिनय हिला कर रख देता है। उनकी आंखे और चेहरे के भाव संवाद से ज्यादा बोलते हैं। अपने अंदर की उदासी और अकेलेपन को वे अपनी बॉडी लैंग्वेज के जरिये बखूबी पेश करते हैं। नि:संदेह अभिनय के स्तर पर यह फिल्म उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। हिंदी फिल्मों में आमतौर पर ‘गे’ चरित्र के किरदार को बहुत हास्यास्पद तरीके से दिखाया जाता है। कानों में बाली पहने, एकदम चिकने, कलाइयों को मोड़ कर बात करने वाले और नजाकत सी चाल वालों को ‘गे’ दिखाया जाता है जिनकी हट्टे-कट्टे पुरुषों को देख लार टपकती रहती है। ‘अलीगढ़’ में जिस तरह से इस किरदार को पेश किया गया है, हिंदी सिनेमा के इतिहास में शायद ही पहले कभी देखने को मिला हो।

5. मसान / Masaan (2015)

निर्देशक- नीरज घैवाण लेखक- वरुण ग्रोवर

मुख्य कलाकार– रिचा चड्डा, संजय मिश्रा, विकी कौशल, श्वेता त्रिपाठी, विनीत कुमार, पंकज त्रिपाठी, श्रीधर दुबे आदि

विशेष नोट- ‘मसान’ यानी श्मशान घाट, जहँ अंतिम संस्कार किया जाता है। ये वही फिल्म है जिसके बाद विक्की कौशल को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली थी। ‘मसान’ की कहानी पांच किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें दीपक (विक्की कौशल) और शालू (श्वेता त्रिपाठी) की बेहतरीन प्रेम कहानी को फिल्माया गया है। इस फिल्म के हर किरदार की कहानी गंगा के घाट से ही शुरू होती है। फिल्म के निर्देशक नीरज घैवाण ने गैंग्स ऑफ वासेपुर में अनुराग कश्यप के सहायक रह चुके थे। मसान को बनाने वाले नीरज घैवाण पहले ऐसे निर्देशक बने जिन्हें कान, फिल्मफेयर और नेशनल अवार्ड तीनों में ‘बेस्ट डायरेक्टर’ का पुरस्कार मिला।

4. हज़ारों ख़्वाइशें ऐसी / Hazaaron Khwaishein Aisi (2012)

निर्देशक- सुधीर मिश्रा लेखक- रुचि नारायण, सुधीर मिश्रा, शिव कुमार सुब्रमण्यम, संजय चौहान

मुख्य कलाकार– के.के. मेनन, चित्रांगदा सिंह, शाहनी आहूजा, सौरभ शुक्ला, राम कपूर, यशपाल शर्मा, अखिल मिश्रा, अनुपम श्याम, शिल्पा शुक्ला आदि

विशेष नोट- यह फिल्म आपातकाल की पृष्ठभूमि पर बनी थी। 1960 और 1970 के दशक में घूमती फिल्म नक्सल आंदोलन, और फिर इमरजेंसी के दौरान युवाओं की आकाँक्षाओं, उनके आदर्शों, समाज को बदल कर रख देने के जूनून और सिस्टम के द्वारा क्रश होने और हाशिये पर धकेल दिए जाने पर निराशा का एक जबरदस्त चित्रण है। फिल्म तीन दोस्तों के करियर को ध्यान में रखते हुए युवाओं के आदर्श, समाज की खामियों और जमीनी संघर्षों के मद्देनज़र युवाओं के अपने आदर्शों को रीविजिट करने के प्रयासों का सशक्त चित्रण है। इसको 6 माह तक विभिन्न 12 फ़िल्म उत्सवों में प्रदर्शित किया गया जिनमें टर्की, एस्टोनिया, रिवर टू रिवर (फ्लोरेंस), बर्लिन, एडिनबर्घ, वाशिंगटन, गोवा, बाइट द मैंगो (ब्रैडफाॅर्ड), काॅमनवेल्थ (मैनचेस्टर), इंडिया (लाॅस एंजिल्स), डालास, एवं पैसिफिक रिम (कैलिफोर्निया) आदि शामिल रहे। फ़िल्म का शीर्षक मिर्ज़ा ग़ालिब की कविता से लिया गया है।

3. बेबी / Baby (2015)

लेखक/निर्देशक- नीरज पांडे

मुख्य कलाकार– अक्षय कुमार, राणा दग्गुबटी, डैनी, तापसी पन्नू, के. के. मेनन, सुशान्त सिंह, मधुरिमा तुली, मुरली शर्मा, अनुपम खेर आदि

विशेष नोट- यह अक्षय कुमार और नीरज पांडे दोनों की सबसे अंडर रेटेड मूवी है जिसे आलोचकों की सराहना तो मिली लेकिन दर्शकों का प्यार नहीं। अक्षय कुमार के दमदार अभिनय, चुस्त पटकथा, जबरदस्त थ्रिल और बेहतरीन डायरेक्शन से सजी इस फ़िल्म को पाकिस्तान में बैन किया गया था। ‘बेबी’ एक गुप्त एजेंटों की इकाई है जो कि भारत सरकार के लिए काम करती है। फ़िरोज़ ख़ान (डैनी) इस इकाई की अगुआई करते हैं। अजय सिंह राजपूत (अक्षय कुमार) एक गुप्त सुरक्षा इकाई के दल में सर्वश्रेष्ठ अधिकारी है। जय सिंह (राणा दग्गूबटी), प्रिया सूर्यवंशी (तापसी पन्नू) एवं शुक्ला (अनुपम खेर) दल के साथी हैं। इनका काम देश के आतंकवादियों को ख़त्म करना है। फ़िल्म बेबी को बॉक्स ऑफ़िस पर औसत सफलता ही मिल पायी थी।

2. गुलाल / Gulaal (2009)

निर्देशक- अनुराग कश्यप लेखक- राज सिंह चौधरी, अनुराग कश्यप

मुख्य कलाकार– के.के. मेनन, पीयूष मिश्रा, राज सिंह चौधरी, दीपक डोबरियाल, आदित्य श्रीवास्तव, माही गिल, अभिमन्यु सिंह, पंकज झा, जेसी रंधावा, आयशा मोहन आदि

विशेष नोट- गुलाल एक बॉलीवुड सोशल ड्रामा है जिसमें एक तरफ स्वार्थ, धोखाधड़ी, झूठी राजपूती शान और राजनीति के चेहरे को बेनकाब करती है तो दूसरी ओर दुनिया की खूबसूरती में यकीन रखने वाले कुछ भोले-भाले लेकिन सच्चे चेहरों को भी सामने लाती है जो नहीं चाहते हुए भी राजनीति के खेल का मोहरा बन जाते हैं और जरूरत पड़ने पर अपने हुक्मरानों पर पलटवार भी करते हैं और हमला भी ऐसा कि बचने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। छात्र राजनीति, राजपूतों के अलग राज्य की माँग, नाजायज औलाद का गुस्सा, प्रेम कहानी, युवा आक्रोश का गलत इस्तेमाल जैसे मुद्दों को फिल्म में दिखाया गया है। पीयूष मिश्रा के लिखे गीत फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाते हैं। उनकी लिखी हर लाइन सुनने लायक है। एक गीत में ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है’ का भी उपयोग किया गया है। फिल्म के संवाद तीखे हैं और तीर की तरह चुभते हैं। अभिनय की दृष्टि से सारे कलाकार एक से बढ़कर एक हैं।

1. तुम्बाड / Tumbbad (2018)

निर्देशक- राही अनिल भर्वे लेखक- मितेश शाह, आदेश प्रसाद, राही अनिल भर्वे, आनन्द गांधी

मुख्य कलाकार– सोहम शाह, ज्योति माल्शी, धुंडीराज प्रभाकर जोगेलकर, रुद्र सोनी, माधव हरि जोशी, पुष्पक कौशिक, अनीता दाते, दीपक दामले, रोन्जिनी चक्रवर्ती आदि

विशेष नोट- यह फिल्म 20 वीं सदी के ब्रिटिश भारत के गांव तुम्बाड (महाराष्ट्र) में छिपे खजाने की खोज की कहानी है। इसे पहली बार 2012 में शूट किया गया था लेकिन एडिटिंग के बाद निर्देशक और मुख्य अभिनेता संतुष्ट नहीं थे। फिल्म को फिर से लिखा गया और मई 2015 में फिल्मांकन पूरा होने के साथ फिर से शूट किया गया। फिल्म की कहानी हालांकि काल्पनिक है, लेकिन जबरदस्त है। पहले फ्रेम से लेकर आखिर तक आपको सीट पर बांधे रखती है। आपको फ़िल्म देखते समय मोबाइल फ़ोन पर ध्यान देने का वक्त नहीं मिलता, क्योंकि पूरी तरह से आपको स्क्रीन पर ध्यान देना पड़ता है कि कहीं कोई चीज छूट ना जाए। फिल्म में मनुष्य के सबसे बड़े मोह और लोभ के बारे में बहुत बड़ी बात कही गई है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर कमाल का है और फिल्मांकन का ढंग बहुत उम्दा है। तुम्बाड को शूट के दौरान काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था इसलिए पूरी फ़िल्म 6 साल में शूट हो पायी। फ़िल्म के बहुत सारे सीन बारिश में फ़िल्माये गये हैं। नकली बारिश का सहारा लेकर फ़िल्म जल्दी बनाई जा सकती थी लेकिन सब कुछ फ़िल्म में असल दिखे इसलिए बारिश के सीन को फ़िल्माने में 4 मानसून लगे। इस फिल्म का माहौल डराता है। फ़िल्म का मुख्य पात्र विनायक डराता है, उसका लालच डराता है। ‘कुछ होने को है’ वाला अहसास डराता है। फ़िल्म का कैमरावर्क डराता है। फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर बहुत बड़ा रोल प्ले करता है। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर फ़्लॉप हो गयी लेकिन समीक्षकों की वाहवाही के बाद इंटरनेट के पाठकों ने इसे थोड़ा बहुत लोकप्रिय बनाया।

11-15
पिंजर (Pinjar), अगली (Ugly), मैंने गांधी को नहीं मारा (Maine Gandhi ko Nahin Mara), मुम्बई मेरी जान (Mumbai Meri Jaan), हे राम (Hey Ram)।

विशेष उल्लेख
उड़ान, तितली, मातृभूमि, स्पेशल 26, शंघाई, ब्लू अम्ब्रैला, रेनकोट, मनोरमा, जुबैदा, परजानियां, दो दूनी चार, न्यूटन, फस गये रे ओबामा, ओक्टोबर, आमिर, हासिल, फ़िराक़, लाल रंग, शौर्य, साहिब बीवी और गैंगस्टर, जॉनी गद्दार, द ग़ाज़ी अटैक, पांच, रॉकेट सिंह: सेल्समेन ऑफ़ द ईयर, ये साली आशिक़ी, ये साली ज़िन्दगी, आंखों देखी, कामयाब, एक हसीना थी, ट्रेप्ड, 13 बी, सोनचिड़िया। {अपडेट दिनांक:- 9 अगस्त 2020}

विशेष नोट:- यह सूची/रेटिंग इंटरनेट पर उपलब्ध स्रोतों एवं बॉलीवुड ख़ज़ाना टीम के गहन विश्लेषण के बाद तैयार की गयी है। यहाँ पर आधुनिक बॉलीवुड की 21वीं शताब्दी में रिलीज़ अर्थात वर्ष 2000 से रिलीज फ़िल्मों को ही लिया गया है। इस सूची में शामिल फ़िल्म का बॉक्स ऑफ़िस पर हिट होना आवश्यक नहीं है। समय और दर्शकों की पसंद के अनुसार यह सूची अपडेट होती रहती है।

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