29/04/2024

फ़िल्म समीक्षा: लापता लेडीज़

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किरण राव निर्देशित लापता लेडीज़ का निर्माण आमिर खान ने किया है। इस फिल्म के साथ किरण 13 साल बाद निर्देशन में लौटी हैं और उन्होंने एक मनोरंजक फिल्म बनाई है। बिप्लब गोस्वामी की कहानी पर आधारित, स्नेहा देसाई की पटकथा और संवाद के साथ और किरण राव द्वारा निर्देशित, यह फिल्म उत्तर भारतीय गांव को प्यार और सौम्य स्पर्श के साथ पेश करती है, जो इसकी पृष्ठभूमि के रूप में कार्य करता है। हर घर का हर कमरा, हाथ से बुने हुए या स्थानीय रूप से खरीदे गए कार्डिगन के नीचे पहनी जाने वाली हर साड़ी, मिक्स-एंड-मैच चाय के कप से लेकर सोने की खाट तक – प्रोडक्शन डिजाइनर विक्रम सिंह द्वारा डिजाइन किए गए दृश्य विस्तार, खुले बरामदे पर गहन ध्यान देने के साथ जीवंत हो उठते हैं।

‘लापता लेडीज’ की कहानी

काल्पनिक मध्य भारतीय राज्य निर्मल प्रदेश में, ट्रेन की यात्रा के दौरान दो दुल्हनों की अदला-बदली हो जाती है। शायद महिलाओं के साथ खोए हुए सामान की तरह व्यवहार किए जाने के लिए केवल सामाजिक रूढ़िवादिता को ही दोषी ठहराया जा सकता है। दोनों महिलाओं ने एक जैसी, एक जैसी लाल साड़ियाँ पहनी हुई हैं। दोनों ने अपने चेहरे लंबे घूंघट से छुपाए हुए हैं। दीपक (स्पर्श श्रीवास्तव) प्रदीप की पत्नी पुष्पा (प्रतिभा रांटा) को घर ले जाता है, जबकि उसकी वास्तविक पत्नी फूल (नितांशी गोयल) एक रेलवे स्टेशन पर फंसी हुई है। पुलिस इंस्पेक्टर मनोहर (रवि किशन) रिश्वतखोर, लेकिन शांत है। इस ग्रामीण चिड़ियाघर की सबसे अच्छी बिल्ली, मनोहर एक भारतीय मार्ज गुंडरसन की कुशलता के साथ अदला-बदली की जांच शुरू करती है। जहां पुष्पा दीपक के विशाल परिवार के साथ तालमेल बिठा लेती है, वहीं फूल चाय बेचने वाली मंजू (छाया कदम) के पास आश्रय लेती है।

‘लापता लेडीज़’ की समीक्षा

आमिर ख़ान के प्रोडक्शन में बनी सभी फिल्में सिनेमा के लिहाज से हमेशा अच्छी रही हैं। चाहे वो ‘पीपली लाइव’ हो या ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ या ‘तारे ज़मीं पर’। सभी फिल्में उत्कृष्ट सिनेमा की पहचान रही है। ‘लापता लेडीज़’ की कहानी एकदम नयी है। कलाकारों का अभिनय इतना बेहतरीन है कि लगता ही नहीं फ़िल्म चल रही है। हल्की-फुल्की कॉमेडी है, जबरदस्त सस्पेंस भी है। पुरुष प्रधान समाज पर करारा तमाचा भी है और सोशल मैसेज भी। स्क्रिप्ट दमदार है और निर्देशन शानदार। कुल मिलाकर सिनेमा की दृष्टि से देखा जाए तो इस साल इससे बेहतर फ़िल्म बॉलीवुड में नहीं आने वाली। फ़िल्म इतनी साफ सुथरी है कि घर-परिवार में किसी के साथ भी बैठकर देखी जा सकती है।
कहानी 2 नई नवेली दुल्हन पर आधारित है जो उनके पति की गलती से शादी के अगले ही दिन ट्रेन में आपस में बदल जाती हैं। इसके बाद शुरू होती है इनकी मनोरंजक खोज। खोज के साथ साथ मिलता है फ़िल्म का असली उद्देश्य। फ़िल्म में दरोगा के किरदार में रवि किशन ने यादगार अभिनय किया है। सिर्फ़ 2 घण्टे की फ़िल्म में 4 छोटे छोटे गाने भी हैं जो कहानी को आगे बढाने का काम करते हैं। अरिजीत सिंह की आवाज में ‘सजनी’ गाना सुनने में बेहतरीन लगता है। आमिर ख़ान की पत्नी किरण राव के निर्देशन में बनी ये फ़िल्म ‘मस्ट वॉच’ कैटेगरी में है। ये फ़िल्म नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर बहुत अवार्ड जीतने वाली है। रही बात कमाई की तो सारे कलाकार नये हैं, बजट बहुत कम है इसलिए बॉक्स ऑफिस पर भी आसानी से हिट हो जाएगी।

अभिनय एवं अन्य तकनीकी पक्ष

‘लापता लेडीज’ की लिखावट काफी दिलचस्प है। बिप्लव गोस्वामी की कहानी, स्नेहा देसाई की पटकथा और दिव्य निधि शर्मा के संवादों में चुटीलापन है। कास्टिंग फिल्म का एक और मजबूत पक्ष है, जिसे रोमिल मोदी ने बखूबी निभाया है। सिनेमेटोग्राफर नौलखा ने काबिल-ए-तारीफ काम किया है। संगीत की बात करें, तो संगीतकार राम संपत ने विषय के अनुरूप म्यूजिक दिया है। कलाकारों का मजबूत अभिनय पक्ष सोने पर सुहागा का काम करता है। लीड कास्ट नितांशी गोयल, स्पर्श श्रीवास्तव और प्रतिभा रांटा छोटे पर्दे पर अभिनय कर चुके हैं, मगर फिल्म के बड़े पर्दे पर डेब्यू करने वाले ये कलाकर अपने-अपने अहम किरदारों को बहुत खूबसूरती से जी गए हैं। फूल के रूप में नितांशी ने मासूमियत और भोलेपन को बनाए रखा है, तो प्रतिभा अपने तेज-तर्रार और बगावती अंदाज में खूब जमती हैं। पत्नी की खोज में बौराए दीपक के किरदार को स्पर्श ने मजबूती से अंजाम दिया है। दारोगा के रूप में रवि किशन की खास अभिनय अदायगी दिल जीत लेती है। वो कहानी में मनोरंजन के डोज को बनाए रखते हैं।
‘लापता लेडीज़’ धोबी घाट के बाद किरण राव की निर्देशक की कुर्सी पर वापसी है। दोनों फिल्मों में सिर्फ साल ही नहीं बल्कि जमीन-आसमान का अंतर है। धोबी घाट एक शहर का चित्र है जिसे इसके निवासियों के ब्रश द्वारा चित्रित किया गया है। लापता लेडीज गांवों पर आधारित है लेकिन जरूरी नहीं कि यह एक ग्रामीण कहानी हो। इसके विषय अधिक सार्वभौमिक हैं। राव के निर्देशन में सहजता है और फिल्म की कहानी दादा-दादी द्वारा कही गई कहानी की तरह सुखद है। वह ग्रामीण जीवन की सुस्ती को बखूबी पकड़ती है। चुटीला हास्य मज़ेदार है और स्थितिजन्य कॉमेडी काम करती है।

देखें या न देखें

शुद्ध सिनेमा देखने के शौकीन और मुद्दों के साथ मनोरंजन देखने वाले लोगों के लिए यह फिल्म परिवार के साथ अवश्य देखनी चाहिए। रेटिंग– 4*/5  ~गोविन्द परिहार (7.03.24)
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