29/04/2024

फ़िल्म समीक्षा: मिशन रानीगंज

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अक्षय कुमार को बॉलीवुड का मिशन किंग कहा जाए तो गलत नहीं होगा। पिछले कुछ समय से वह अपनी अधिकतर फिल्मों में किसी न किसी मिशन पर जाते नजर आए हैं या किसी मिशन से जुड़े रहे हैं। चाहे वो ‘मिशन मंगल’ हो या ‘रामसेतु’, ‘एयरलिफ्ट’ या फिर ‘मिशन रानीगंज’।  बेशक लगातार कई फ्लॉप झेलने के बाद ‘ओएमजी 2’ अक्षय कुमार के लिए गुड न्यूज लेकर लौटी थी। इस फिल्म में भी उनके आगे एक मिशन है और यह एक सच्ची घटना पर आधारित फिल्म है। ये एक बायोग्राफिकल फिल्म है जो कि रियल लाइफ हीरो जसवंत सिंह गिल के जीवन पर आधारित है।

मिशन रानीगंज की कहानी

फिल्म की कहानी जसवंत सिंह गिल पर आधारित है, जो आईआईटी धनबाद के इंजीनियर थे। पश्चिम बंगाल में 1989 में रानीगंज कोयले की खदान में एक हादसा हुआ था, जिसमें 350 फीट नीचे कई मजदूर फंस गए थे। खदान में ब्लास्ट की वजह से तेज़ रफ्तार से पानी भर गया। अधिकतर माइन वर्कर्स वहां से निकल गए मगर 65 लोग अंदर ही फंसे रह गए, एक अनोखे कैप्सूल का निर्माण करके जसवंत सिंह गिल ने उन्हें वहां से बाहर निकाला।  ‘कैप्सूल मैन’ कहे जाने वाले जसवंत के इसी महान काम को ‘मिशन रानीगंज’ में दिखाया गया है। फिल्म की शुरुआत जसवंत बने अक्षय और उनकी पत्नी निर्दोष कौर यानी परिणीति चोपड़ा के साथ शुरू होती है। एक दिन जसवंत को रानीगंज में हादसे की खबर मिलती है और फिर य​हीं से रोमांच का सफर शुरू होता है।

मिशन रानीगंज की समीक्षा

सरदार जसवंत सिंह गिल (जिनका किरदार अक्षय कुमार ने निभाया)

मिशन रानीगंज’ रियल सिनेमा है। इसमें कोई मिर्च मसाला नहीं है। वही ढांचागत सिनेमा, जिसकी कहानी तो थोड़ी अलग है मगर उसे बरता बिल्कुल रेगुलर तरीके से जाता है। अगर वैसे देखें, तो ‘मिशन रानीगंज’ नियर परफेक्ट सिनेमा है। एक असल कहानी, जिसके लिए आपको नायक गढ़ने की ज़रूरत नहीं थी। कहानी ही नायक थी। अक्षय कुमार को उस फिल्म को स्टारपावर देते हैं, मगर स्टार होने को कहानी के रास्ते में बाधा नहीं बनने देते। अगर आप कोई अंजान एक्टर लाकर भी जसवंत सिंह गिल के किरदार में डाल देते, तो उससे ‘मिशन रानीगंज’ अलग फिल्म नहीं हो जाती। ‘मिशन रानीगंज’ देखते वक्त आपको थ्रिल का भाव महसूस होता है क्योंकि यहां रेस अगेंस्ट द टाइम चल रहा है।  यानी समय कम है और काम ज़्यादा। आपका दिमाग घड़ी के कांटे से तेज़ चल रहा है। अगर कोई फिल्म आपके दिमाग की इतनी वर्जिश करवा रही है, तो वो ठीक ठाक काम है। ‘मिशन रानीगंज’ ऐसा कर ले जाती है। एकदम एज ऑफ द सीट थ्रिलर तो नहीं कहेंगे क्योंकि ये असल कहानी है और सबको पता है कि ये खत्म कैसे होती है? बावजूद इसके आप कहानी से बंधे रहते हैं। यही निर्देशिक की जीत है। ‘मिशन रानीगंज’ देखते हुए सिर्फ जसवंत सिंह गिल ही नहीं, आप भी चाहते हैं कि सबकुछ ठीक से हो जाए, तो शांति से बैठकर गहरी सांस लें।

निर्देशन

इस फिल्म को टिनू सुरेश देसाई ने डायरेक्ट किया है, जो इससे पहले अक्षय कुमार की ‘रुस्तम’ डायरेक्ट कर चुके हैं। टीनू देसाई ने सिर्फ लीड हीरो अक्षय कुमार ही नहीं अपनी फिल्म के हर किरदार को समय दिया है और उनपर काम किया है। कहानी का विषय ही ऐसा ही कि यदि इसे अच्छी तरह से प्रजेंट नहीं किया जाता तो इसकी आत्मा खत्म हो जाती। यहां निर्देशक टीनू सुरेश देसाई की तारीफ करनी होगी। देसाई ने फिल्म के पहले शॉट से लेकर क्लाइमैक्स तक पकड़ बनाए रखी है। भय, रोमांच, विश्वास को उन्होंने बखूबी दर्शाया है, जो दर्शकों को पूरे टाइम बांधे रखता है। फर्स्‍ट हाफ में चीजें ब‍िल्‍डअप करने से लेकर सेकंड हाफ में क्‍लाइमैक्‍स तक, कहानी कहीं भी रोमांच को ढीला नहीं पड़ने देती है।

अभिनय एवं अन्य तकनीकी पक्ष

कहानी के​ किरदारों के हिसाब से ढ़लने में अक्षय कुमार को महारत हासिल है। जसवंत सिंह गिल के तौर पर उन्होंने इस किरदार की आत्मा को पकड़ा है। ऐसी मुश्किल भरी सिचुएशन में विश्वास और सूझबूझ के साथ किस तरह उस दौर में असल जसवंत सिंह ने मोर्चा संभाला था, यह अक्षय ने बखूबी दिखाया है। व‍हीं कुमुद म‍िश्रा, रव‍ि क‍िशन जैसे एक्‍टर्स ने अपने-अपने क‍िरदार से कहानी को और भी दमदार बनाने का काम क‍िया है। फिल्म के केंद्र में अक्षय ही हैं और वे किरदार के साथ न्याय करने में सफल भी रहे हैं। खदान में फंसे सपोर्टिंग किरदारों ने भी उम्दा काम किया है। अक्षय कुमार के अलावा इस फिल्म में परिणीति चोपड़ा, कुमुद मिश्रा, जमील खान, रवि किशन, बरुण बडोला और दिब्येंदु भट्टाचार्य जैसे एक्टर्स ने भी काम किया है। परिणीति बमुश्किल फिल्म के तीन-चार सीन्स और एक गाने में दिखती हैं। अक्षय के अलावा जमील खान इकलौते एक्टर हैं, जिन्हें थोड़ा बहुत कौशल दिखाने का मौका मिलता है। वो अच्छे एक्टर हैं। ये उन्होंने पहले भी साबित किया है।  उन्हें ‘बदमाश कंपनी’ और ‘बेबी’, जैसी फिल्मों में देखा गया है। साथ ही गुल्लक जैसी बेहतरीन वेबसीरीज में जमील खान ने बेहतरीन काम किया है। कुमुद मिश्रा फिल्म में हर मौके पर हाथ में सिगरेट पकड़े नज़र आते हैं, मुझे ओवरएक्टिंग सी लगी। हालांकि अच्छे एक्टर हैं लेकिन यहाँ कुछ खास नहीं कर पाए।

देखें या न देखें

अक्षय कुमार पहले भी रेस्क्यू ऑपरेशन वाली फिल्मों में नज़र आ चुके हैं। उनकी ‘एयरलिफ्ट’ और ‘बेबी’ की तरह ये भी एक रेस्क्यू ड्रामा फिल्म है। कुल मिलाकर ये फिल्म आज की पीढ़ी को जरूरी देखनी चाहिए। स्पाइडरमैन, सुपरमैन के जमाने में भी असल जिंदगी के रीयल हीरोज के बारे में जरूर जानना चाहिए। मुझे ये अच्छी लगी! हालाँकि कुछ कमियां हैं लेकिन अक्षय कुमार की फिल्मोग्राफी में यह फ़िल्म एक विशेष स्थान रखेगी। ऐसा मुझे लगता है। हालाँकि बॉक्स ऑफिस पर ये फ़िल्म अभी अपना बजट भी नहीं निकाल पाई है लेकिन किसी भी अच्छी फिल्म का पैमाना बॉक्स ऑफिस कलैक्शन नहीं होता। रेटिंग– 3.5*/5  ~गोविन्द परिहार (22.10.23) 

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