29/04/2024

शोले: फ़िल्म ऑफ़ द मिलेनियम

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शोले (Sholay) भारत की सफलतम फ़िल्मों में से एक है। इस फ़िल्म ने बॉक्स ऑफिस पर पैसों की बरसात कर दी थी। गली-गली फ़िल्म के संवाद गूंजे। पक्के दोस्तों को जय-वीरू कहा जाने लगा तो बक-बक करने वाली लड़कियों को बसंती की उपमा दी जाने लगी। मांओं ने अपने छोटे बच्चों को गब्बर का डर दिखाकर सुलाया। भारतीय जनमानस पर इस फ़िल्म का गहरा असर हुआ। 38 वर्ष बाद इस फ़िल्म को थ्री डी में परिवर्तित कर फिर रिलीज़ किया गया था। 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई ‘शोले’ को 45 वर्ष हो गये हैं। इस फ़िल्म से जुड़े कई किस्से मशहूर हुए।

शोेले के बारे में रोचक तथ्य

  1. शोले बॉलीवुड फ़िल्म इतिहास में पहली फ़िल्म थी जो 100 से अधिक सिनेमाघरों में लगातार 25 हफ्तों से ज्यादा तक लगी रही थी। 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई शोले ने भारत में 60 जगह गोल्डन जुबली (50 सप्ताह) और 100 से ज्यादा सिनेमाघरों में सिल्वर जुबली (25 सप्ताह) मनाई थी। मुंबई के मिनर्वा थिएटर में शोले लगातार 5 सालों तक लगी रही थी।
    शोेले के दृश्य में जय (अमिताभ बच्चन) और वीरू (धर्मेन्द्र)
  2. दर्शकों की अदालत में ब्लॉकबस्टर साबित हुई ‘शोले’ को केवल एक फ़िल्मफेयर पुरस्कार (बेस्ट एडिटिंग) मिला। शोले जब रिलीज़ हुई थी तो फ़िल्म समीक्षकों ने इसकी काफी आलोचना की थी, लेकिन जब यह फ़िल्म ब्लॉकबस्टर हो गई तो अचानक ज्यादातरों के सुर बदल गए। इसे क्लासिक और कल्ट मूवी कहा जाने लगा।
  3. बीबीसी इंडिया ने 1999 में ‘शोले’ को फ़िल्म ऑफ द मिलेनियम घोषित किया। ये खिताब ब्रिटिश फ़िल्म इंस्टीट्यूट के एक पोल के आधार पर दिया गया। फ़िल्म की लाइनें एक चलन की तरह ट्रक और ऑटोरिक्शा पर देखी जाती हैं। शोले की कहानी और किरदारों से प्रेरणा लेकर कई फ़िल्में बाद में बनी।
  4. प्रसिद्ध फ़िल्म आलोचक अनुपमा चोपड़ा की किताब ‘शोले: द मेकिंग ऑफ क्लासिक’ में फ़िल्म शोले को भारतीय सिनेमा का गोल्डन स्टैंडर्ड कहा गया है। इसी किताब में शेखर कपूर द्वारा कही गई बातें लिखी है कि इस फ़िल्म से ज्यादा डिफाइंड फ़िल्म भारतीय सिनेमाघरों में कभी नहीं आई थी। भारतीय फ़िल्म के इतिहास को ‘आफ्टर शोले’ और ‘बिफोर शोले’ के नाम से भी अलग किया जा सकता है।
  5. शोले जब रिलीज़ हुई तो शुक्रवार और शनिवार बॉक्स ऑफिस पर इस फ़िल्म को अपेक्षानुरूप सफलता नहीं‍ मिली। भारी बजट की भव्य फ़िल्म का यह हाल देख निर्देशक रमेश सिप्पी चिंतित हुए। रविवार को उन्होंने अपने घर पर बैठक रखी जिसमें लेखक सलीम-जावेद को भी बुलाया गया। फ़िल्म के कमजोर प्रदर्शन का अर्थ ये निकाला गया कि अंत में अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के किरदार की मौत को दर्शक पसंद नहीं कर रहे हैं। रमेश सिप्पी ने प्रस्ताव रखा कि फ़िल्म का अंत बदला जाए। लोकेशन पर पहुंच कर वे नया अंत शूट कर लेंगे और बाद में फ़िल्म में जोड़ देंगे। सलीम-जावेद को नया अंत लिखने की जिम्मेदारी दी गई। सलीम-जावेद ने रमेश सिप्पी को सलाह दी कि जल्दबाजी करने के बजाय एक-दो दिन रूकना चाहिए। यदि फ़िल्म का प्रदर्शन फिर भी ख़राब रहता है तो वे नया अंत शूट कर लेंगे। उनकी बात मान ली गई। एक-दो दिन बाद फ़िल्म का प्रदर्शन बॉक्स ऑफिस पर सुधर गया और फिर बेहतर होता चला गया।
    गब्बर के किरदार में अमजद ख़ान
  6. सलीम-जावेद जब शोले की पटकथा लिख रहे थे तब राज खोसला की फ़िल्म आई थी- मेरा गांव मेरा देश (1971) और नरेन्द्र बेदी की फ़िल्म खोटे सिक्के भी डकैत समस्या पर आधारित थी। इन फ़िल्मों ने सलीम-जावेद को काफी आइडियाज दिए।
  7. शोले फ़िल्म में गब्बर की गुफा और ठाकुर का घर मीलों दूर दिखाया गया है लेकिन सचमुच में दोनों पास-पास थे। रामनगर को फ़िल्म के सेट के मुताबिक मुंबई के तीस और स्थानीय सत्तर लोगों ने रात-दिन मेहनत कर पूरा गांव बसा दिया।
  8. फ़िल्म में अमजद ख़ान को गब्बर सिंह डाकू का जो नाम दिया गया, वह असली डाकू का नाम है। सलीम के पिता उन्हें डकैत गब्बर के बारे में बताया करते थे। वह पुलिस पर हमला करता और उनके कान-नाक काट कर छोड़ दिया करता था।
  9. ठाकुर के रोल के लिए प्राण के नाम पर विचार किया गया जो सिप्पी फ़िल्म्स की कई फ़िल्में पहले कर चुके थे। लेकिन रमेश सिप्पी, संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) की प्रतिभा के कायल थे। सीता और गीता (Seeta aur Geeta) में वे संजीव के साथ काम कर चुके थे। अत: परिणाम संजीव के पक्ष में रहा।
  10. शोले में गब्बर सिंह को मॉडर्न डकैत के रूप में दिखाया गया, जो सैनिक पोशाक पहनता है। इसके पहले दिलीप कुमार (Dilip Kumar) की गंगा-जमुना (Ganga Jamuna) या सुनील दत्त (Sunil Dutt) की मुझे जीने दो (Mujhe Jeene Do) फ़िल्म में डाकू धोती-कुर्त्ता में आए थे। ललाट पर लम्बा तिलक। यह सिप्पी को पसंद नहीं था।
  11. गब्बर का रोल पहल डैनी डेन्जोग्पा (Danny Denzongpa) करने वाले थे, लेकिन वह फ़िरोज ख़ान (Feroz Khan) की फ़िल्म धर्मात्मा (Dharmatma) के लिए डेट दे चुके थे। फिरोज और रमेश सिप्पी दोनों अपने शेड्युल बदलना नहीं चाहते थे। लिहाजा डैनी के हाथ से शोले फिसल गई। अमजद खान का नाम गब्बर के लिए फाइनल करने में सलीम खान का हाथ है। हालांकि जावेद अख्तर यह नाम पहले सुझा चुके थे। अमजद के पिता जयंत एक अच्छे एक्टर थे। सलीम साहब का उनके घर आना-जाना था। तब अमजद छोटे थे। एक दिन वह अमजद के पास गए और कहा कि किस्मत अच्छी होगी, तो इस बड़ी फ़िल्म में काम मिल जाएगा और तुम भी बड़े कलाकार बन जाओगे।
  12. शोले में बहुत सी चीजें पहली बार हुई थी। यह पहली फ़िल्म थी जो 70 मिलीमीटर में बनी थी और पहली फ़िल्म जिसमें स्टीरियो फोनिक साउंड का इस्तेमाल किया गया था।
  13. गब्बर नाम का डाकू सचमुच में चम्बल घाटी में हुआ था। उसके जीवन पर जया भादुड़ी के पिता ने ‘अभिशप्त चम्बल’ नामक किताब लिखी थी। वह अमजद को पढ़ने को दी गई। अमजद की पत्नी शैला उसे पढ़ कर अमजद को समझाती जाती थी। सचमुच के गब्बर ने बचपन में एक धोबी को अपनी पत्नी को पुकारते सुना था- अरे ओ शांति। यही संवाद आगे चल कर अरे ओ सांभा बन गया। गब्बर सिंह की खाकी वर्दी को मुंबई के चोर बाजार से खरीदा गया था। गब्बर को गंदे डाकू का लुक देने के लिए पूरी शूटिंग के दौरान वर्दी को एक भी बार नहीं धुला गया।
    सूरमा भोपाली के किरदार में जगदीप
  14. सूरमा भोपाली का नाम जावेद की उपज है। यह किरदार उन्हें भोपाल निवास के दौरान सूझा था। सूरमा भोपाली का किरदार भोपाल के एक वन अधिकारी की जिंदगी से लिया गया था।
  15. जय के रोल के लिए शत्रुघ्न सिन्हा (Shatrughan Sinha) का नाम फाइनल था। मगर सलीम-जावेद तथा धर्मेन्द्र (Dharmendra) ने अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का नाम सुझाया। जबकि अमिताभ की कई फ़िल्में फ्लॉप हो रही थी, लेकिन सलीम-जावेद को जंजीर फ़िल्म की पटकथा पर भरोसा था। उनका मानना था कि जंजीर सफल रहेगी और अमिताभ स्टार बन जाएंगे। हुआ भी ऐसा ही। अमिताभ को जंजीर रिलीज़ होने के पहले ही साइन किया जा चुका था।
  16. वीरू और जय नाम के दो सहपाठी सलीम के साथ कॉलेज में पढ़ते थे। वहीं से इनके नाम जस का तस ले लिए गए।
  17. फ़िल्म की कहानी जब धर्मेन्द्र ने सुनी तो उन्हें ठाकुर का रोल दमदार लगा क्योंकि कहानी ठाकुर और गब्बर के लड़ाई के बीच की है। उन्हें वीरू के रोल में ज्यादा दम नजर नहीं आया। रमेश सिप्पी को तरकीब सूझी। उन्होंने धर्मेन्द्र से कहा कि ठाकुर को तो फ़िल्म में रोमांस करने का मौका ही नहीं मिलेगा जबकि वीरू के हीरोइन हेमा मालिनी के साथ कई रोमांटिक सीन हैं। धर्मेन्द्र का दिल उस समय हेमा मालिनी (Hema Malini) पर आया हुआ था। संजीव कुमार भी हेमा को पसंद करते थे। सिप्पी ने कहा कि वे वीरू का रोल संजीव कुमार को दे देंगे। तरकीब काम कर गई और धरम पाजी वीरू का किरदार निभाने के लिए राजी हो गए।
    राधा (जया बच्चन) और जय (अमिताभ बच्चन)
  18. फ़िल्म में एक कमाल का सीन है जिसमें जया बच्चन लालटेन जला रही हैं और अमिताभ माउथ आर्गन बजा रहे हैं। बमुश्किल दो मिनट वाले इस सीन को फ़िल्माने में 20 दिन का समय लगा था।
  19. शोले का संगीत पोलिडार कम्पनी को पांच लाख और रॉयल्टी बेसिस पर एडवांस में बेच दिया गया था। पांच गानों के पांच लाख। उस समय के यह सबसे महंगे अधिकार बिके थे। पो‍लिडार को एक लाख ग्रामोफोन रिकॉर्ड बिकने के बाद मुनाफा होना था। मगर पोलिडार के मालिक शशि पटेल की बहन गीता से रमेश सिप्पी की शादी हुई थी, इसलिए इतना महंगा डील पूरा हुआ।
  20. वीरू का पानी की टंकी पर खड़े होकर बसंती के साथ शादी के लिए मौसी को राजी करने वाला दृश्य एक सच्ची घटना से प्रेरित है।
  21. रमेश सिप्पी शोले को भारत की भव्य फ़िल्म बनाना चाहते थे। 35 एमएम का फॉर्मेट फ़िल्म को महान बनाने के लिए छोटा था। लिहाजा तय किया गया कि इसे 70 एमएम और स्टीरियोफोनिक साउंड में बनाया जाए। लेकिन विदेशों से कैमरे मंगाकर शूटिंग करने से शोले का बजट बढ़ जाता। लिहाजा अधिकांश शूटिंग 35 एमएम में कर 70 एमएम में ब्लोअप किया गया।
    ठाकुर (संजीव कुमार) और गब्बर (अमजद ख़ान)
  22. शोले के बाद से ही स्क्रीनप्ले लेखकों की बॉलीवुड में इज्जत होना शुरू हुई, और उन्हें अपने काम के लिए अच्छी कीमत मिलने लगी।
  23. सांभा का रोल मैकमोहन (Mac Mohan) ने निभाया था। जब उन्हें पता चला कि फ़िल्म में उनके संवाद नहीं के बराबर हैं तो वे दु:खी हो गए। निर्देशक रमेश सिप्पी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि यदि फ़िल्म चल निकली तो वे बेहद लोकप्रिय हो जाएंगे और ऐसा ही हुआ। माना जाता है कि सांभा का फ़िल्म में केवल एक ही संवाद है, जब गब्बर सिंह सभी से पूछता है कि उस पर सरकार ने कितना इनाम रखा है, तो सांभा जवाब देता है पूरे पचास हज़ार। लेकिन एक और डायलाग सांभा का है। सांभा और उसके साथी ताश खेलते हैं तब सांभा कहता है ‘चल बे जुंगा, चिड़ी की रानी है’ इस पर उनका साथी बोलता है ‘चिड़ी की रानी तो ठीक है सांभा, वो देख चिड़ी का गुलाम आ रहा है।’
  24. शोले फ़िल्म ने बाजार में कई तरह की चीजों को बेचने में कामयाबी हासिल की थी। ग्लुकोज बिस्किट्स से लेकर ग्राइप वॉटर तक।
  25. पहले फ़िल्म में दिखाया गया था कि गब्बर को ठाकुर मार डालता है, लेकिन सेंसर बोर्ड के यह पसंद नहीं आया। बाद में इसे बदला गया।
  26. शोले का गाना ‘ए दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ को फ़िल्माने में 21 दिन का समय लगा था।
  27. फ़िल्म के डायलॉग “कितने आदमी थे” को परफेक्‍ट बनाने के लिए डायरेक्‍टर ने 40 रीटेक लिए थे।
  28. 2005 में 50वें फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स में शोले को पिछले 50 साल की बेस्‍ट फ़िल्म का पुरस्कार दिया गया था।
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