29/04/2024

फ़िल्म समीक्षा: आर्टिकल 370

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भारतीय संविधान का ‘आर्टिकल 370’ जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देता था। 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रभाव को खत्म कर दिया था। साथ ही राज्य को दो हिस्सों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बांट दिया था और दोनों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया था। फिल्म ‘उरी- द सर्जिकल स्ट्राइक’ का निर्देशन कर चुके आदित्य धर ने सत्य घटना पर आधारित एक और फिल्म ‘आर्टिकल 370’ का निर्माण किया है। जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने की घटनाओं से आम जनता भली भांति परिचित हैं लेकिन इस धारा को हटाने से पहले क्या-क्या तैयारियां हुई, वह सब इस फिल्म में दिखाया गया है। यह फिल्म जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों को केंद्र शासित प्रदेश घोषित करने के प्रधानमंत्री कार्यालय के टॉप सीक्रेट फैसले पर आधारित है।

‘आर्टिकल 370’ की कहानी

असल में फिल्म की कहानी ‘आर्टिकल 370’ को निरस्त करने की स्ट्रेटजी के इर्द गिर्द घूमती है, जिसका आरंभ होता है इंटेलिजेंट ऑफिसर जूनी हक्सर (यामी गौतम) के खुफिया मिशन से। जूनी अपने सीनियर खावर (अर्जुन राज) की परमिशन के बगैर कमांडर बुरहान वानी का एनकाउंटर कर देती है। उसके बाद कश्मीर में हिंसा और अस्थिरता फैल जाती है। इस बवाल का ठीकरा जूनी के सिर पर फोड़ा जाता है और उसे कश्मीर और उसकी स्पेशल इंटेलिजेंस की ड्यूटी से हटाकर दिल्ली में ट्रांसफर कर दिया जाता है। सेकंड हाफ में कहानी का फोकस प्रधानमंत्री बने अरुल गोविल और गृह मंत्री बने किरण करमाकर पर रखा गया है। फिल्म में हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का नाम नहीं लिया गया है, मगर आप समझ जाते हैं कि ये दो महत्वपूर्ण किरदार कौन हैं? फिल्म दो घंटे 40 मिनट जितनी लंबी है, इसके बावजूद इसमें होने वाले सीक्रेट ऑपरेशन के कारण निर्देशक इसको थ्रिलर स्पेस में बांधे रखते हैं। दिल्‍ली में सरकार गोपनीय ढंग से ‘आर्टिकल 370’ को निरस्त करने की रणनीति बनाती है, जिसमें पीएमओ सचिव राजेश्वरी स्वामीनाथन (प्रियामणि) ने गहन रिसर्च की है। राजेश्वरी कश्मीर के हालात से वाकिफ हैं और उसे जूनी की काबिलियत का भी अंदाजा है। ऐसे में वो जूनी को अपनी स्पेशल टीम गठित कर कश्मीर में एनआईए के तहत स्पेशल ऑपरेशन के लिए नियुक्त करती है। एक ओर दिल्ली में आर्टिकल 370 को निरस्त करने की पॉलिटिकल तैयारी और दूसरी तरफ कश्मीर में भ्रष्ट नेता और अलगाववादियों का सामना कर घाटी में अमन कायम करने की मुहिम पर कहानी आगे बढ़ती है। फिल्म का क्लाइमैक्स ‘आर्टिकल 370’ को शांतिपूर्ण ढंग से निरस्त करने की नोट पर खत्म होता है।

‘आर्टिकल 370’ की समीक्षा

फिल्‍म की कहानी अलग-अलग चैप्टर में पेश की गई है, जो दिलचस्प लगती है। फिल्म के जरिए एक तरफ राष्ट्रप्रेम की भावना को जगाने का प्रयास किया गया है, दूसरी तरफ यह फिल्म ‘आर्टिकल 370’ को निरस्त करने की जरूरत पर जोर देती है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक विषय के अनुरूप और दमदार है। फिल्म में गानों को जबरदस्ती ठूंसा नहीं गया है, जो अच्छी बात है। कोई हीरोगिरी नहीं दिखाई गई है। हीरोगिरी क्या हीरो ही नहीं हैं। बस 2 महिला किरदार हैं जो बेहतरीन अभिनेत्री हैं। ‘आर्टिकल 370’ पॉलिटिकल ड्रामा फिल्म है जिसमें जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने से पहले और बाद के घटनाक्रमों के साथ इसे हटाने की जरूरत को दिखाया गया है। फिल्म में यामी गौतम ने आइबी अधिकारी की भूमिका निभाई है जबकि प्रियामणि पीएमओ की अधिकारी बनी हैं। रामायण वाले श्रीराम यानि अरुण गोविल प्रधानमंत्री की भूमिका में हैं जबकि किरण करमाकर ने गृह मंत्री का किरदार निभाया है।

अभिनय एवं अन्य तकनीकी पक्ष

कलाकारों का अभिनय फिल्म की सबसे मजबूत कड़ी साबित होती है, जिसमें हर फिल्म में अपनी अभिनय प्रतिभा का लोहा मनवाने वाली यामी गौतम एक बार फिर अपने अभिनय की सशक्त भूमिका के साथ छा जाती हैं। उनका नो मेकअप लुक और किरदार के अंदर का गुस्सा उनकी परफॉर्मेंस को खास बनाता है। प्रियामणि जैसी साउथ की होनहार अभिनेत्री ने एक्टिंग के मामले में यामी से कहीं भी कमतर साबित नहीं होतीं। पर्दे पर दो मजबूत पात्रों में अभिनेत्रियों को केंद्र में देखना अच्छा लगता है। इंटेलिजेंस अफसर यश चौहान की भूमिका में वैभव तत्ववादी, कश्मीरी नेता के रोल में राज जुत्शी, खावर के किरदार में राज अर्जुन, कश्मीरी नेता दिव्या के रूप में दिव्या सेठ की भूमिकाएं बेहद दमदार हैं। अमित शाह बने किरण कर्माकर अपने अभिनय के खास अंदाज से मनोरंजन करते हैं, जबकि पीएम मोदी बने अरुण गोविल ने अपने चरित्र के साथ न्याय किया है। फिल्म के बाकी कलाकारों में सुमित कौल, स्कन्द ठाकुर और इरावती हर्षे ने अपनी अपनी भूमिका के साथ पूरी तरह से न्याय करने की कोशिश की है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी, संकलन, बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है।

निर्देशक आदित्य सुहास जांभले पहले सीन से ही फिल्म का मिजाज सेट कर देते हैं। थ्रिलर अंदाज में बुना गया बुरहान का एनकाउंटर सीन दर्शकों में उत्सुकता पैदा करता है कि आगे क्या होगा? फिल्म का पहला भाग काफी तनाव से भरा है, जो कथानक को रोचक बनाता है, मगर सेकंड हाफ कहानी ढीली पड़ जाती है। खास तौर पर तब जब आर्टिकल 370 को निरस्त करने के दांव-पेंच में निर्देशक सिनेमैटिक लिबर्टी लेते हुए दिखते हैं। इस अनुच्छेद से जुड़े दस्तावेजों को जिस तरह से खोजा गया है, वह विश्वसनीयता पर सवाल पैदा करता है। आदित्य धर की उरी (2019) में 2016 के उरी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के पीछे की कहानी को कुशलता से दर्शाया गया है। वह फिल्म भी चुनावी साल में रिलीज हुई थी। आदित्य आर्टिकल 370 के सह-निर्माता और सह-लेखक हैं और उनकी पत्नी और सक्षम अभिनेता यामी गौतम यहां खुफिया अधिकारी ज़ूनी हक्सर के रूप में टीम का नेतृत्व करती हैं।

देखें या न देखें

अगर आपको पता नहीं है कि आर्टिकल 370 हटाने के पीछे क्या रणनीति थी, तो अपना ज्ञान बढ़ाने के लिए फिल्म देख सकते हैं। फिल्म में एक बड़े मुद्दे को कहीं कहीं बहुत हल्के अंदाज में दिखा दिया है, लेकिन बावजूद इसके फिल्म एक बार देखनी लायक है। रेटिंग– 3.5*/5  ~गोविन्द परिहार (27.02.24)

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