दो आंखें बारह हाथ / Do Aankhen Barah Haath (1957)
शैली- कॉमेडी-क्राइम-ड्रामा (2 घंटे 23 मिनट) रिलीज- 1957
निर्माता/निर्देशक- वी. शान्ताराम
लेखक- जी.डी. मदगुलकर
संपादन– चिंतामणि बोरकर सिनेमैटोग्राफ़ी– जी. बालकृष्ण
मुख्य कलाकार- वी. शान्ताराम, संध्या, बाबूराव पेंढारकर, उल्हास, बीएम व्यास, पॉल शर्मा, एसके सिंह, गजेन्द्र, जी इंगावाले, चंदरकर, त्यागराज, आशा देवी, शंकरराव भोसले, समर, सुनील, केशवराव दाते।
कथावस्तु
कहानी एक युवा प्रगतिशील और सुधारवादी विचारों वाले जेलर आदिनाथ की है, जो क़त्ल की सज़ा भुगत रहे 6 खूंखार क़ैदियों को एक पुराने जर्जर फार्म-हाउस में ले जाकर सुधारने की अनुमति ले लेता है और तब शुरू होता है उन्हें सुधारने की कोशिशों का आशा-निराशा भरा दौर। राजकमल कला मंदिर के बैनर तले निर्मित और वी. शांताराम निर्देशित फ़िल्म दो आँखें बारह हाथ को भला कौन भूल सकता है। वी. शांताराम ने दो आँखें बारह हाथ फ़िल्म बनाई, तब उनकी उम्र सत्तावन साल थी और वो बहुत ही चुस्त-दुरूस्त हुआ करते थे।
गीत-संगीत
इस फिल्म के गीत बहुत हिट हुए जो अक्सर आज भी सुनने को मिल जाते हैं। भरत व्यास ने फ़िल्म के गीत लिखे और संगीत वसंत देसाई ने दिया था। सुर सम्राज्ञी लता मंगेशकर और मन्ना डे ने इस फ़िल्म में के गाने गाये थे। दो आँखें बारह हाथ का संगीत शांताराम की अन्य फ़िल्मों की तरह उत्कृष्ट था और आज भी रेडियो स्टेशनों पर इसकी खूब फरमाईश की जाती है।
- “ऐ मालिक तेरे बंदे हम” (लता मंगेशकर)
- “तक तक धुम धुम” (लता मंगेशकर)
- “मैं गाऊं तू चुप हो जा” (लता मंगेशकर)
- “सईयां झूठों का बडा सरताज निकला” (लता मंगेशकर)
- “हो उमड घुमडकर आई रे घटा” (मन्ना डे, लता मंगेशकर)
सम्मान एवं पुरस्कार
- इस फ़िल्म को 1957 में सर्वश्रेष्ठ फीचर फ़िल्म के लिए राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।
- 1957 में इस फ़िल्म को बर्लिन फ़िल्म फेस्टिवल में ‘सिल्वर बियर’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्म के लिए सैमुअल गोल्डविन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
- 1958 में चार्ली चैपलिन के नेतृत्व वाली जूरी ने इसे ‘बेस्ट फ़िल्म ऑफ़ द ईयर’ का खिताब दिया था।
रोचक तथ्य
- मुंबई में ये फ़िल्म लगातार 65 हफ्ते चली थी। कई शहरों में इसने गोल्डन जुबली मनाई थी।