17/12/2025

फ़िल्म समीक्षा: धुरंधर

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आधा दर्जन स्टार अभिनेताओं से भरी होने के बावजूद धुरंधर को देखनी की बड़ी वजह थे इसके निर्देशक आदित्य धर। जिन्होंने 2019 में उरी बनाकर तहलका मचा दिया था! उनसे कुछ ऐसी ही उम्मीद थी! सच्ची घटनाओं से काल्पनिक कहानी बुनी गई है जो अच्छी तो है! कहानी लम्बी है इसलिए दो पार्ट में दिखाने का फैसला लिया गया! इसी वजह से कुछ कमियां भी है!

‘धुरंधर’ की कहानी

कंधार हाईजैक और 2001 संसद हमले के बाद भारतीय इंटेलिजेंस एक जासूसी मिशन शुरू करती है जिसका नाम है धुरंधर। मिशन का काम पाकिस्तान में जाकर, उनके साथ रहकर आतंक का सफाया करना। ये बोलना जितना आसान है दिखाना या करना बहुत मुश्किल। यही इस फ़िल्म में दिखाया गया है। फ़िल्म का पहला पार्ट 2 घण्टे का है उसमें कुछ अच्छे सीन आते हैं लेकिन इंगेज नहीं रख पाता। इंटवरल के बाद कहानी रफ़्तार पकड़ती है, जिसमें रोमांच, देशभक्ति, एक्शन, इमोशन सब है! और खत्म भी ऐसी जगह होती है जहाँ दूसरे पार्ट को देखने की कसक रह जाती है।

‘धुरंधर’ की समीक्षा

“धुरंधर” शांति काल की युद्ध कथा है। चित्ताकर्षक, वीर, वीभत्स और रौद्र रसों में आकंठ डूबी, ए रेटेड. ख़ून, मांस, अस्थि, मज्जा का शृंगार करती फ़िल्म, ऐसा गोर-स्लैशर-एक्शन सिनेमा जो देख सकते हैं, सिर्फ उन्हीं के लिए यह है। निर्देशक आदित्य धर ने 3 घंटे 32 मिनट का एक भीषण शाहकार रचा है जो स्लर्प कर-करके भोज किए जाने लायक है। यह एक इंस्टेंट क्लासिक है। एक नई अप्रोच, नई स्टोरीटेलिंग, नए ट्रीटमेंट वाली फ़िल्म। आदित्य धर एक अति सक्षम, संभावनाओं से भरे और बेहद चतुर फिल्ममेकर हैं। वे धुरंधर को हाइब्रिड रखते हैं। इसमें ज्यादातर कैरेक्टर्स, जगहें, घटनाएं एकदम सच्ची हैं, तथ्यात्मक है। कुछ कैरेक्टर्स और कहानी के हिस्से काल्पनिक हैं। कई धमाकों और आतंकी घटनाओं की रियल फुटेज डॉक्यूमेंट्री के अंदाज में बरती गई है। इन सबके बाद फ़िल्म की तीसरी सबसे बड़ी ताकत है संगीत। शाश्वत सचदेव के साउंडट्रैक, बीजीएम ताकतवर, शानदार, थिरकाने वाले, कहानी की मादकता बढ़ाने वाले हैं। जब रहमान डकैत, बलोचों के बाग़ी नेता शिरानी के पास जाते हैं तो उस सीन का बीजीएम चरम है। 70-80 के दशक के बॉलीवुड गानों का भरपूर इस्तेमाल हुआ है जैसे आदित्य धर ने अपनी पर्सनल प्लेलिस्ट फिल्म में डाल दी हो, जैसा एनिमल में संदीप रेड्डी वांगा ने किया था।

अभिनय एवं तकनीकी पक्ष

इस धुरंधर का असली हीरो और विलेन एक ही इंसान है रहमान डकैत। अक्षय खन्ना ने ऐसा ऐतिहासिक किरदार निभाया है जो लंबे समय तक याद रखा जाएगा! बिना किसी खास कदकाठी के खूंखार, कसाई, रहमान बलोच (असली नाम) आदमी के रूप में अक्षय ने कहर ढा दिया है। उनका हर सीन, हर संवाद पूरी फिल्म में छाया रहता है। रोल भी काफी लंबा है। कई सीन में बिना डॉयलॉग के भी गहरा असर छोड़ते हैं, यही दमदार अभिनय की निशानी है! फ़िल्म में कई डॉयलॉग हैं जो दमदार हैं। आर माधवन अजीत डोभाल पर बेस्ड कैरेक्टर प्ले करते हैं। वो डोभाल की स्पिरिट और अपने यकीनी इंटरप्रिटेशन से एक नया किरदार गढ़ते हैं जो मिशन धुरंधर का प्रणेता है। पहचान में ही नहीं आते। पाकिस्तानी मेजर इकबाल के रूप में अर्जुन रामपाल ने भी छाप छोड़ी है! इसमें उनका रोल छोटा है लेकिन बहुत ही पावरफुल है। अगला पार्ट उन्हीं पर आधारित होगा! रणवीर सिंह ने अच्छा काम किया है, वे रोल में घुसने के लिए फेमस हैं, यहाँ भी उन्होंने यही किया है। हीरोइन सारा अर्जुन और उनके पिता राकेश बेदी का काम भी बेहतरीन है। सारा को बहुत क्लोजअप शॉट दिए गए हैं जिससे उनकी खूबसूरती और मासूमियत उभरकर आयी है। राकेश बेदी जमील जमाली के रोल में लाजवाब और मन मोहने वाले हैं। इतने लंबे करियर के बावजूद वे आज भी कुछ नया निकालकर ले आ रहे हैं। अपने हर सीन में वो कुछ न कुछ नया, फ्रैश, विटी करते जाते हैं और आपके चेहरे पर मुस्कान दौड़ जाती है। जमील नेशनल असेंबली का मेंबर है और लयारी भी उसका एरिया है। यह पात्र नबील गबोल पर आधारित है।

देखें या न देखें

फ़िल्म में मास वैल्यू ज्यादा, क्लास कम है! फ़िल्म की एडीटिंग बेहतर हो सकती थी, छोटी भी होनी चाहिए थी लेकिन बजट बहुत ज्यादा (350 करोड़) था इसलिए दो पार्ट में रिलीज का फैसला लिया गया जो सही है! इस सब के बावजूद फ़िल्म देखने लायक है! गाली बहुत हैं लेकिन म्यूट कर दिया गया है! एक्शन सीन बहुत ही दर्दनाक हैं, बच्चों को नहीं दिखा सकते! बीजीएम और ‘गहरा हुआ’ गाना अच्छा है! अक्षय खन्ना के लिए जरूर देखनी चाहिए! ⭐⭐⭐ ~गोविन्द परिहार  (06.12.25)

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