13 अप्रैल, 1919 को बैसाखी के दिन पंजाब के गर्वनर माइकल ओ’डायर के आदेश पर ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर ने जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन करने वाले निहत्थे हिंदुस्तानियों पर तब तक गोलियां बरसाई जब तक वह खत्म नहीं हो गईं। हजारों मासूम लोगों की मौत पर ब्रिटिश साम्राज्य ने कभी माफी नहीं मांगी। देश के इतिहास की प्रचलित घटनाओं को केसरी फ्रेंचाइज फिल्म में लाने वाले निर्माता करण जौहर ने अब केसरी चैप्टर 2 : द अनटोल्ड स्टोरी आफ जलियांवाला बाग में जनरल डायर को अदालत में खींचने वाले भारतीय वकील सर सी शंकरन नायर पर यह फिल्म बनाई है।
केसरी चैप्टर 2 की कहानी
शंकरन नायर एक प्रसिद्ध वकील (अक्षय कुमार) है जिसे ब्रिटिश शासन नाइटहुड सर की उपाधि से सम्मानित कर चुका है लेकिन उसे जब अहसास होता है कि ब्रिटिश सरकार जलियांवाला बाग के भीभत्स हत्याकांड का सच छुपा रही है तो वो खुद ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ केस लड़ने का फैसला करता है। उन्हें टक्कर देने आता है आधा एंगो इंडियन वकील नेविल मैककिनले (आर माधवन)। अदालती जिरह में जनरल डायर के निर्णयों पर शंकरन सवाल उठाते हैं। शंकरन नायर की मदद करती है दिलरित गिल (अनन्या पांडे)।
केसरी चैप्टर 2 की समीक्षा
यह फिल्म रघु पलात और पुष्पा पलात द्वारा लिखी किताब ‘द केस दैट शुक द एम्पायर’ पर आधारित है। ये फ़िल्म हर भारतीय को देखनी चाहिए। किस तरह अंग्रेजों ने हम पर जुल्म ढाए और हम सहते रहे! इस फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक को धन्यवाद देना चाहिए जिनके बदौलत हम ऐसे ऐतिहासिक तथ्य जान पाए। देश की आजादी के योगदान में अपना सबकुछ लगाने वाले भूले बिसरे हीरो लोगों के बारे में जान पाए। बैरिस्टर सी शंकरन नायर जैसे बहादुर और बेहद बुद्धिमान भारतीय के बारे में जान पाए। अक्षय कुमार ने पिछली कुछ फ़िल्मों में अपने अभिनय कला में जबरदस्त रेंज दिखाई है जो पहले कभी कभी दिखती थी! परदे पर वकील का किरदार करना आसान नहीं होता! यहां अक्षय ने एक बार फिर अपनी दमदार संवाद अदायगी दर्ज कराई है। फ़िल्म की पटकथा मजबूत है, बैकग्राउंड म्यूजिक दमदार है, क्लाईमेक्स जबरदस्त है। कुछ संवादों में अंग्रेज़ी भाषा में गाली दी गई है लेकिन वो ज़रूरी लगी। पहली बार मुझे गाली ज़रूरी लगी! टॉयलेट वाले दृश्य में एक एडल्ट डॉयलॉग है लेकिन बहुत ही पावरफुल है! क्लाईमेक्स इतना बेहतरीन है कि इसे देखते समय हर भारतीय के रोंगटे खड़े हो जायंगे! माधवन का अभिनय भी जबरदस्त है और अनन्या पांडे का काम भी अच्छा है।
संवाद लेखक सुमित सक्सेना ने एक-दो अच्छी लाइनें लिखी हैं; नायर ने कहा, “अब मेरे सवाल भी आपको शिकायत जैसे लगते हैं”, और मैककिनले का सुझाव कि हर कोई, कोई न कोई कानून तोड़ रहा है, आपको बस यह पता लगाना है कि कौन सा कानून तोड़ रहा है, आज के भारत की झलक देता है। अमित सियाल ने एक मजाकिया अभिनय किया है, जो सरकारी अधिकारी तीरथ सिंह की भूमिका को शुष्क तथ्यात्मकता के साथ निभाता है। पांडे ज़्यादातर समय शांत रहते हैं, चिल्लाने और मुंह बनाने का काम कुमार, माधवन और अंग्रेजों पर छोड़ देते हैं, जिनकी हिंदी आपको कैप्टन रसेल की मधुर आवाज़ की याद दिलाएगी। निर्देशक करण सिंह त्यागी ने फिल्म के डायरेक्शन के अलावा स्क्रीनप्ले को भी बखूबी लिखा है। सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों को बनाने के लिए मेकर्स के सामने बड़ी चुनौती रहती है कि वह वास्तविकता की पृष्ठभूमि पर कितनी खरी उतरनी चाहिए। करण ने केसरी 2 के मामले में ये काम बखूबी किया है। कई सीन्स आपको एकदम रियल लगेंगे।
देखें या न देखें
इतिहास में रुचि है तो अवश्य देखें। जब भी मौका लगे अवश्य देखें! फ़िल्म को मिस नहीं करना चाहिए! ~गोविन्द परिहार (19.04.25)