फ़िल्म समीक्षा: सिकंदर
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जमाना रहा है जब सलमान खान की फिल्म कैसी भी हो, कम से कम उसका पहला शो तो हाउसफुल होता ही था। ‘जय हो’, ‘रेस 3’, ‘दबंग 3’, ‘टाइगर 3’ जैसी तमाम फिल्में हैं जो सिर्फ सलमान खान के होने भर से भीड़ खींच लाती रही हैं। फिल्म ‘सिकंदर’ इसी चक्कर में इतवार को रिलीज हुई लेकिन ईद के दिन भी सिनेमाहाल खाली नजर आए।
सिकंदर की कहानी

सिकंदर की समीक्षा
सलमान ख़ान की फ़िल्मों का विश्लेषण करना आसान नहीं लेकिन सिकंदर उनकी सबसे कमजोर फ़िल्म है! ये फ़िल्म हर लिहाज से साधारण है! साधारण इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि 10-12 साल के बच्चों को पसन्द आ रही होगी! इस फ़िल्म का ट्रीटमेंट बहुत ही औसत है! कहानी आउटडेटेड है, सलमान की परफॉर्मेंस बोरिंग है और निर्देशन शायद सबसे ख़राब है। पटकथा में दम नहीं, किसी भी चरित्र पर मेहनत नहीं की गई है। गाने साधारण, संवाद असरहीन और डॉयलॉग डिलीवरी बोरिंग है! याद नहीं आख़िरी बार इतनी साधारण फ़िल्म कब देखी थी!
स्क्रीनप्ले, अभिनय से लेकर एक्शन तक हर मोर्चे पर फिल्म लड़खड़ाती नजर आती हैं। राजा साब को एक अच्छा आदमी दिखान के लिए प्रतीक बब्बर को लुच्चागिरी करते दिखाया जाता है। जिस नेता के बेटे के रोल में वह हैं, उसका किरदार सत्यराज ने किया है। न प्रतीक में विलेन वाला दम है और न सत्यराज में एक दबंग नेता की शख्सियत। दोनों मिलकर भी फिल्म का विलेन डिपार्टमेंट नहीं संभाल पाते हैं। निर्देशक ए आर मुरुगादॉस ने आमिर के साथ ‘गजनी’ शानदार बनाई। उसके बाद उन्होंने अक्षय कुमार के साथ ‘हॉलीडे’ बनाई। ये दोनों फिल्में बड़ी हिट साबित हुई लेकिन इसके बाद सोनाक्षी के साथ ‘अकीरा’ और अब ये ‘सिकंदर’। दोनों बहुत ही औसत फिल्म हैं। ‘सिकंदर’ में मुरुगादॉस ने दर्जनों कलाकार जुटाए हैं, लेकिन अदाकारी एक से भी नहीं करा सके हैं।
देखें या न देखें
अगर आप सलमान खान के जबरा फैन हैं तो आपको सिकंदर आपको अच्छी लग सकती है। सिंकदर की सबसे अच्छी बात यही कि ये एक फैमिली फ़िल्म है, इसमें अधिकांश फ़िल्मों की तरह गन्दगी नहीं है। ~गोविन्द परिहार (03.04.25)
