14/05/2024

फ़िल्म समीक्षा: सम्राट पृथ्वीराज

1 min read

फ़िल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ एक ऐतिहासिक पुस्तक ‘पृथ्वीराज रासो’ पर आधारित है। पृथ्वीराज रासो, हिन्दी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है जो लगभग ढाई हज़ार पन्नों का है। इस महाकाव्य की रचना पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंद बरदाई ने की, जो वीररस के कवि होने के साथ एक ज्योतिर्विद भी थे। ब्रज भाषा में लिखे इस महाकाव्य में दो ही प्रधान रस हैं श्रृंगार रस और वीर रस। यह महाकाव्य आज भी वीररस का सर्वश्रेष्ठ काव्य है।

जब किसी रचना पर फ़िल्म बनती है तो थोड़ी नाटकीय होती ही है क्योंकि ढाई हजार पन्नों पर कोई सिर्फ 2 घंटे की फ़िल्म नहीं बना सकता तो कुछ बातें जोड़ दी जाती है और कुछ बातें हटा दी जाती है। यदि आपको इतिहास से गहरा लगाव है तो विभिन्न लेखकों की विभिन्न समयकाल की रचनाओं को पढ़ना होगा तब जाकर किसी एक तथ्य पहुंच पायेंगे। हालांकि निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी का कहना है कि उन्होंने इस विषय पर 18 वर्ष शोध किया है लेकिन फ़िल्म को देखने के बाद लगा नहीं कि इतना शोध किया होगा बल्कि कई जगह विवादों से बचने के लिए कहानी को बहुत जल्दी खत्म कर दिया है।

सम्राट पृथ्वीराज की कहानी

कहानी के मुताबिक 12वी शताब्दी में चौहान (चाहमन) वंश के पृथ्वीराज, अजमेर के राजा हैं जिसकी सीमा दिल्ली तक जाती है। तत्कालीन दिल्ली के सम्राट, पृथ्वीराज की बहादुरी और साहस को देखकर अपना उत्तराधिकारी घोषित करते हैं तो यह कन्नौज के राजा जयचंद को रास नहीं आता। कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता भी पृथ्वीराज की बहादुरी पर मोहित हो जाती और उससे प्रेम कर बैठती है। पृथ्वीराज को अपमानित करने के लिए जयचंद अपनी बेटी संयोगिता का स्वयंवर रचाता है लेकिन स्वयंवर में ही संयोगिता पृथ्वीराज की प्रतिमा को माला पहनाकर अपना वर चुन लेती है। इसी समय पृथ्वीराज, संयोगिता को जयचंद के सामने से उठाकर ले जाता है। इस अपमान का बदला लेने के लिए जयचंद एक चाल चलता है जिसमें वह ग़जनी के सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी से मदद मांगता है। सुल्तान मुहम्द ग़ौरी, पृथ्वीराज से पहले भी युद्ध हार चुका होता है। इसलिये सुल्तान ग़ौरी अपनी हार का बदला और जयंचद की मदद करने के लिए दिल्ली पर हमला करने भारत आता है और युद्ध में धोखे से पृथ्वीराज को कैद कर लेता है। यहाँ से आगे की कहानी सिर्फ सिनेमाहॉल में देखने लायक है।

‘सम्राट पृथ्वीराज’ की समीक्षा

फ़िल्म की समीक्षा की जाये तो फ़िल्म को दो हिस्सो में बांटा जा सकता है पहला ग़जनी वाला हिस्सा जहाँ सुल्तान ग़ौरी के पास सम्राट पृथ्वीराज कैद है। जहाँ पृथ्वीराज का असली पराक्रम, बहादुरी, साहस, डायलॉग डिलीवरी, बैकग्राउंड म्युजिक सबकुछ बेहतरीन लगता है। दूसरा हिस्सा जब पृथ्वीराज, अजमेर में राजा होता है फिर दिल्ली का सम्राट बनता है, कन्नौज में स्वयंवर के सीन, अजमेर में दरबार के सीन। यानी लगभग आधी फ़िल्म बहुत ही साधारण सी लगती है। इस दौरान संवाद बेहद साधारण है। वेबजह उर्दू शब्दों का प्रयोग किया गया है जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। इस दौरान अक्षय की डायलॉग डिलीवरी भी कई जगह काफी कमजोर है। ये बात सही है कि अक्षय कुमार इस रोल के लिये फिट नहीं थे, लेकिन आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि निर्देशक की पहली पसंद अक्षय नहीं बल्कि सनी देओल और ऐश्वर्या राय थे। इसीलिये मुझे लगता है सनी देओल से बेहतर अक्षय कुमार रहे क्योंकि सनी देओल को 25 साल के पृथ्वीराज के रूप में देखना हास्यापद हो सकता था। और किसी नये हीरो के कंधों पर 250 करोड़ का दांव लगाना बहुत रिस्की था किसी भी निर्माता के लिए।

अभिनय एवं तकनीकी पक्ष

अक्षय का अभिनय कुछ सीन्स में बहुत अच्छा है तो कुछ में बेहद साधारण। काका कान्ह के रूप में संजय दत्त औसत रहे। सोनू सूद बेहतरीन लगे हैं उनके हिस्से में अच्छे संवाद आये हैं आने भी थे क्योंकि कवि हैं। जयचंद के रूप में आशुतोष राणा अच्छे लगे हैं और संयोगिता बनी मानुषी छिल्लर खूबसूरत लगीं। सुल्तान ग़ौरी के रूप में मानव विज भी बस ठीक ही लगे, कोई खास असर नहीं छोड़ पाये। डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी का कहानी लेखन-निर्देशन औसत ही लगा क्योंकि कई जगह ऐसा लगा कि वे एक बहुत ही अच्छा अवसर चूक गये वरना फ़िल्म बहुत ही बेहतरीन बन सकती थी। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है, युद्ध के सीन अच्छे हैं, वीएफएक्स भी अच्छा है शेर ऐसे नहीं लगे कि नकली हैं। गाना हरि-हर और टाइटल गीत को छोडकर अन्य सभी साधारण लगे।

देखे या न देखें

यदि इतिहास में रुचि है तो फ़िल्म एक बार देखनी चाहिये। यदि सिने प्रेमी हो तो अवश्य देखनी चाहिए क्योंकि कुछ फ़िल्मों के ट्रेलर या पोस्टर से कभी भी अंदाजा नहीं लगाना चाहिए कि फ़िल्म कैसी होगी? ~गोविन्द परिहार (03.06.22)

Loading

3 thoughts on “फ़िल्म समीक्षा: सम्राट पृथ्वीराज

  1. इस फिल्म में इतिहास से छेड़ छाड़ हुए है
    उर्दू का काफी प्रयोग हुआ है
    ऐतिहासिक से ज्यादा रोमांटिक है
    शब्द प्रयोग ठीक नहीं है ऐसा मैने सुना है @thejaipurdialogues
    पर
    https://youtu.be/Fu1QB4fJwaE

    1. उमा जी, आपने सही कहा। मेरा भी यही मानना है। जैसा कि कहा गया निर्देशक महोदय ने 18 वर्षों का शोध किया है ऐसा लगा नहीं। और जिन बिन्दुओं पर आपने टिप्पणी की है उनका मैं पहले ही समीक्षा में जिक्र कर चुका हूँ। लिंक भेजने के लिए धन्यवाद।

Comments are closed.

संपर्क | अस्वीकरण | गोपनीयता नीति | © सर्वाधिकार सुरक्षित 2019 | BollywoodKhazana.in
Optimized by Optimole