फ़िल्म समीक्षा: टाइगर 3
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‘एक था टाइगर’ और ‘टाइगर जिंदा है’ जैसी फिल्मों के बाद सलमान खान इस फ्रेंचाइजी की तीसरी फिल्म ‘टाइगर 3’ के साथ दिवाली के मौके पर बड़े पर्दे पर दस्तक दे चुके हैं। बॉलीवुड को पाकिस्तान से नफरत और उसी से मोहब्बत का एक ऐसा फॉर्मूला फिल्म ‘एक था टाइगर’ (2012) में 11 साल पहले मिला था कि उसकी राह पर चलकर कई हिंदी फिल्में पाकिस्तान को एक अच्छा मुल्क दिखाने की कोशिश करती रही हैं। टाइगर की तो ससुराल ही पाकिस्तान है और वह कहता भी है, ‘ससुराल मुसीबत में हो तो दामाद को मदद के लिए आना ही चाहिए।’ यशराज फिल्म्स की स्पाई यूनिवर्स की पांचवीं फिल्म ‘टाइगर 3’ दिवाली के अनार, पटाखे, फुलझड़ी लेकर बॉक्स ऑफिस पर पहुंची।
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‘टाइगर 3’ की कहानी

‘टाइगर 3’ की समीक्षा
यशराज फिल्म्स की जासूसी दुनिया का ये सबसे सीनियर जासूस इकलौता देसी जासूस है जो शादीशुदा है और जिसके एक बड़ा हो चुका बेटा भी है। पटकथा फिल्म ‘टाइगर 3’ की सबसे बड़ी कमजोरी है। वतन के नाम पर वतन के नौजवान शहीद हों, गाने वाले हिंदी सिनेमा में दुनिया भर की पुलिस को चकमा देते रहे एक रॉ एजेंट के घर में घुसकर कोई आईएसआई अफसर कारनामा कर जाए और उसे खबर तक न हो, इससे कमजोर किरदार ‘टाइगर’ का कुछ और हो ही नहीं सकता। टाइगर ने पिछली फिल्म में नर्सों को बचाया था और क्लाइमेक्स में अपनी बीवी जोया को। जिस बच्चे की मां को वह मौत के मुंह से निकाल लाया था, उसी बच्चे को टाइगर की कमजोरी बताने वाली फिल्म ‘टाइगर 3’ के पास एक तरह से देखा जाए तो इस जासूसी दुनिया को पहली बार ठीक से स्थापित करने का बेहतरीन मौका था जो मेकर्स ने गवां दिया। पठान बनकर आए शाहरुख की कैमियो बहुत लंबा खींचा गया जिससे उसका असर ही खत्म हो गया। टाइगर के डायलॉग कमजोर हैं। विलेन बने इमरान हाशमी का अभिनय अच्छा है लेकिन उनकी कद काठी इस रोल के लायक नहीं लगी। इनकी जगह शायद अर्जुन रामपाल होते तो अधिक ढंग से निभा पाते। असल में काफी कमियों के बाजवूद फ़िल्म का क्लाइमैक्स संतोषजनक लगा। मानवता को देश या धर्म से ऊपर का दर्जा देने की कोशिश अच्छी लगी। पाकिस्तान में भारत और टाइगर के लिए राष्ट्र गीत की धुन बजवाना अच्छा लगा।
निर्देशन

अभिनय एवं तकनीकी पक्ष
सलमान खान अपने चिरपरिचित अंदाज में हैं। उनका एक्शन और स्वैग उनके फैंस को भाता है। इमरान हाशमी ने अच्छा काम किया हैं। उन्होंने अपनी भूमिका में जान लगा दी है। पठान के रूप में शाहरुख खान का कैमियो और टाइगर के साथ उनका ब्रोमांस मजेदार है। कुमुद मिश्रा, विशाल जेठवा, रिद्धि डोगरा, रेवती, रणवीर शौरी जैसे कलाकार अपनी भूमिकाओं में ठीक लगे हैं। कैटरीना कैफ पर अब उम्र का असर साफ दिखने लगा है। इसके बावजूद टॉवेल फाइट सीन और चेज सीक्वेंस में भी उनका करिश्मा असर करता है। संगीत की बात करें, तो प्रीतम के ‘रुंवा’ और ‘लेके प्रभु का नाम’ जैसे दोनों गाने अच्छे औसत से ऊपर हैं लेकिन पिछली फिल्मों की तरह हिट नहीं। डायलॉग उतने दमदार नहीं बन पाए। सिनेमटोग्राफर अजय गोस्वामी ने दिल्ली, मुंबई, इस्तांबुल, सेंट पीटसबर्ग, ऑस्ट्रिया जैसे लोकेशनों को बहुत ही कमाल अंदाज में फिल्माया है।
देखें या न देखें
एक्शन या सलमान के फैन हैं तो फिल्म अवश्य देखें वरना छोड़ भी सकते हैं। रेस 3, दबंग 3 के बाद अब टाइगर 3 सलमान के लिए इशारा है कि समय रहते बेहतर फ़िल्म की स्क्रिप्ट का चुनाव नहीं किया तो आगे सिर्फ स्टारडम से फ़िल्म चलाना सम्भव नहीं होगा! रेटिंग– 2.75*/5 ~गोविन्द परिहार (24.11.23)
