14/05/2024

फ़िल्म समीक्षा: ड्रीम गर्ल 2

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कोरोना महामारी से पहले आयुष्मान खुराना का असर था अब घटने लगा है। गुलाबो सिताबो (2020), अपने सभी आकर्षण के बावजूद, सीधे-से-डिजिटल हो गई और गंभीर रूप से कम देखी गई। उनकी ‘सामाजिक संदेश’ वाली फिल्में पहले की तरह काम नहीं कर रही हैं- चंडीगढ़ करे आशिकी, अनेक भी नहीं चली। ‘डॉक्टर जी’ को पसंद किया गया। इस बीच, ‘एन एक्शन हीरो’ जैसी फिल्में भारत में कब चलेंगी इसके लिए शोध करना पड़ेगा। इसके बाद वह ड्रीम गर्ल (2019) का सीक्वल लेकर आए हैं। उनकी सबसे तीखी, फिर भी व्यावसायिक रूप से सबसे सफल फिल्मों में से एक रही थी ड्रीम गर्ल।

‘ड्रीम गर्ल 2’ की कहानी

करम (आयुष्मान खुराना) से, जो पार्ट वन में राम लीलाओं में अभिनय किया करता था, अब वह माता के जगराते गाता है। वह और उसका पिता जगजीत (अन्नू कपूर) अभी भी कर्ज की दलदल में डूबे हुए हैं, मगर साथ है परी (अनन्या पांडे) और करम उसके प्यार में डूबा हुआ है। इस प्यार के बीच का विलेन है परी का पिता जयपाल (मनोज जोशी), जिसकी शर्त है कि जब तक करम बैंक बैलेंस के रूप में 25 लाख, अपना घर और एक पक्की नौकरी नहीं ढूंढ लेता, तब तक वह परी से शादी नहीं कर सकता। करम का दोस्त स्माइली (मनजोत सिंह) और उसका पिता जगजीत उसे सोना भाई (विजय राज) के डांसिंग बार में लड़की बनकर पैसा कमाने की तरकीब आजमाने के लिए राजी करते हैं, मगर पैसों की जरूरत खत्म नहीं होती और करम को पूजा बनकर अबू सलीम (परेश रावल) के बेटे शाहरुख (अभिषेक बनर्जी) संग शादी तक करनी पड़ जाती है। अबू सलीम के घर में उसका सौतेला बेटा शौकिया (राजपाल यादव) पूजा के प्यार में पड़ जाता है, तो अबू सलीम की रंगीन मिजाज बहन जुमानी (सीमा पाहवा) करम से शादी करना चाहती है, जबकि जुमानी पहले से शादीशुदा है, सोना भाई से, मगर सोना भाई तो अपने डांस बार में काम करने वाली पूजा पर लट्टू हो चुका है। इन किरदारों में पूजा और करम को लेकर जो कन्फ्यूजन पैदा होता है। अब करम पूजा की सचाई को कब तक छिपा पाता है? क्या वह पैसों का जुगाड़ कर परी से शादी करने में कामयाब हो पाता है? ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।

‘ड्रीम गर्ल 2’ की समीक्षा

निर्देशक राज शांडिल्य ने आयुष्मान खुराना को पूजा के रूप ‘ड्रीम गर्ल’ (2019) में पेश करने के बाद, उन्हें और अधिक साहसी, बेबाक और बोल्ड अवतार में उतारा है। पहले भाग में, हमने उसे हर किसी के दिलों में अपनी जगह बनाने की बात करते हुए सुना, और दूसरी किस्त में वह टेलीफोन से बाहर निकलकर एक जीवित साँस लेती हुई ‘महिला’ के रूप में प्रकट हुई लेकिन पूजा के रूप में आयुष्मान द्वारा दिखाए गए सभी स्वैग और सादगी के बावजूद, ड्रेस गर्ल 2 प्रभावित नहीं कर पाती। करम का पूजा बनकर चार-चार मर्दों को रिझाना तर्क से थोड़ा परे लगता है, मगर हास्य और मनोरजंक सिचुएशन में आप तर्क पर ज्यादा ध्यान दिए बगैर एंटरटेन होते हैं। फिल्म में अन्नू कपूर, असरानी, परेश रावल, विजयराज, सीमा पाहवा, राजपाल यादव जैसे कॉमिक के दिग्गजों की भरमार है, जिनके सहारे राज शांडिल्य मजेदार कन्फ्यूजन क्रिएट करते हैं, मगर कई जगहों पर उन्होंने किरदारों के अनावश्यक ट्रैक डाल दिए हैं, जिनके कारण कहानी खिंच जाती है। कहानी में उतार-चढ़ाव की कमी खलती है। क्लाइमेक्स भी थोड़ा लंबा नजर आता है। वन लाइनर के जरिए रोजमर्रा की जिंदगी में वह हास्य तलाश ले जाते हैं, मगर कुछ संवाद बचकाने भी लगते हैं। फ़िल्म की कहानी तेज़ है जो अच्छी बात है। ‘नइयो लगदा‘ और ‘मैं निकला गड्डी लेके‘ जैसे गानों का इस्तेमाल जबरदस्ती किया जाता  है। क्लाइमेक्स भाषण भी काम नहीं करता। यह देखकर हैरानी होती है कि करम परी को दोषी महसूस करा रहा हैजबकि करम ने परी से झूठ बोला था कि उसे पैसे कहां से मिल रहे हैं।

अभिनय एवं अन्य तकनीकी पक्ष

आयुष्मान खुराना ने हर तरह से दिलों को जीतने वाली परफॉर्मेंस दी है। करम और पूजा के बीच का उनका स्विच ओवर दिलचस्प है। पूजा के किरदार में उनकी मेहनत कद काठी के साथ-साथ अदाओं और डांस में भी झलकती है। लेकिन ये सब हम पहले भी देख चुके हैं तो उत्साह नहीं जग पाता। अनन्या पांडे को फिल्म में ज्यादा मौका नहीं मिल पाया है, मगर अन्य सहयोगी कलाकारों का अभिनय फिल्म का मजबूत पक्ष है। लंबे अर्से बाद परेश रावल को अबू सलीम के जोरदार किरदार में देखना अच्छा लगा। छोटे से किरदार में असरानी भी हंसाते हैं, वहीं अन्नू कपूर अपनी चिर-परिचित शैली भी खूब मनोरंजन करते हैं। विजय राज और राजपाल यादव कॉमिडी में और तड़का लगाते हैं, तो सीमा पाहवा अपने विशिष्ट अंदाज में हास्य को और बढ़ाती हैं। मनजोत और अभिषेक बनर्जी ने भी इनका खूब साथ दिया है। निर्देशक राज शांडिल्य के डायलॉग बेहद मजेदार और मजाकिया हैं। फिल्म का सबसे मजेदार किरदार टाइगर पांडे (रंजन राज) नाम का एक बैंक कर्मचारी है, जिसे फोन पर पूजा की आवाज से प्यार हो जाता है और वह उसकी तलाश करता है उसे पूरे आगरा और मथुरा में।

संगीत औसत है। ‘दिल का टेलीफोन 2.0′ सबसे अच्छा ट्रैक है। ‘नाच‘, ‘जमनापार‘ और ‘मैं मरजावांगी‘ अपेक्षित प्रभाव पैदा नहीं कर पाते। हितेश सोनिक का बैकग्राउंड स्कोर थोड़ा लाउड है और यह इस शैली की फिल्म के लिए काम करता है। सी के मुरलीधरन की सिनेमैटोग्राफी साफसुथरी है। अंकिता झा की वेशभूषा यथार्थवादी है लेकिन आयुष्मान के पूजा के किरदार के लिए यह आवश्यकता के अनुसार काफी जीवंत है। रजत पोद्दार का प्रोडक्शन डिजाइन संतोषजनक है। हेमल कोठारी की एडिटिंग बहुत तेज़ है।

देखें या न देखें

कुल मिलाकरड्रीम गर्ल 2 पहले की तरह असर नहीं कर पाती। फिल्म में कॉमेडी है लेकिन उतनी असरदार नहीं। समय हो तो देख लीजिए बुरी नहीं, वरना छोड़ भी सकते हैं।  रेटिंग– 2.5*/5  ~गोविन्द परिहार (11.11.23)

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