दोस्ती / Dosti (1964)
शैली- ड्रामा-फैमिली-म्यूजिकल (2 घंटे 43 मिनट) रिलीज- 6 नवंबर, 1964
निर्माता- ताराचंद बड़जात्या निर्देशक- सत्येन बोस
पटकथा- गोविन्द मूनिस मूल लेखक- बाण भट्ट
गीतकार- मजरूह सुल्तानपुरी संगीतकार- लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल
संपादन– जी.जी. मयेकर सिनेमैटोग्राफ़ी– मार्शल ब्रगेंजा
मुख्य कलाकार
- सुशील कुमार – रामनाथ गुप्ता उर्फ़ रामू
- सुधीर कुमार – मोहन
- बेबी फ़रीदा – मंजुला उर्फ़ मंजु
- उमा राजू – मीना
- संजय ख़ान – अशोक
- लीला मिश्रा – मौसी
- नाना पालसिकर – शर्मा जी (स्कूल में अध्यापक)
- लीला चिटनिस – रामू की माँ
- अभि भट्टाचार्य – स्कूल का हेडमास्टर
कथावस्तु
यह फ़िल्म एक अपाहिज लड़के और एक अन्धे लड़के के बीच दोस्ती को दर्शाती है। रामनाथ गुप्ता उर्फ़ रामू (सुशील कुमार) के पिता एक फ़ैक्टरी हादसे में चल बसते हैं। जब फ़ैक्टरी उनकी मौत का हर्ज़ाना देने से इन्कार कर देती है तो उसकी माँ (लीला चिटनिस) यह सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाती है और वह भी दम तोड़ देती है। सड़क दुर्घटना में रामू अपनी एक टांग गंवा बैठता है। बेघर, बिन पैसे के और अपाहिज रामू जब मुंबई की सड़कों की ख़ाक छान रहा होता है तो उसकी मुलाकात मोहन (सुधीर कुमार) नाम के एक अन्धे लड़के से होती है जिसकी कहानी भी रामू के जैसी ही है। मोहन गांव का रहने वाला है और बचपन में ही अपनी आँखें खो बैठा है। मोहन की बहन मीना गांव से शहर नर्स बनने के लिए आई थी ताकि मोहन की आँखों का इलाज करा सके। अब मोहन अपनी बहन को ढूंढता हुआ शहर आया है। रामू और मोहन गलियों में गाकर अपना पेट भरने लगते हैं और सड़क के किनारे ही सो जाते हैं।
गीत-संगीत
दोस्ती के सभी गीत मजरूह सुल्तानपुरी द्वारा लिखे गये हैं और संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा रचित है। इसके सभी गाने इतने लोकप्रिय हुए कि चारों तरफ़ उन्हीं की गूंज सुनाई देती थी। चाहे फिल्म की कहानी हो, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत, रफ़ी साहब की मधुर आवाज़ हो।
- “मेरा तो जो भी कदम है” (मोहम्मद रफ़ी) 3:47 मिनट
- “चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे” (मोहम्मद रफ़ी) 4:54 मिनट
- “कोई जब राह न पाये” (मोहम्मद रफ़ी) 4:19 मिनट
- “गुड़िया कब तक ना हँसोगी” (लता मंगेशकर) 3:29 मिनट
- “जाने वालों ज़रा मुड़ के” (मोहम्मद रफ़ी) 5:16 मिनट
- “राही मनवा दु:ख की चिन्ता” (मोहम्मद रफ़ी) 4:05 मिनट
सम्मान एवं पुरस्कार
यह फिल्म 4वें मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी शामिल हुई थी।
- राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (1964)- सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़िल्म
- फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (1965)- कुल 6 पुरस्कार अपनी झोली में डाले।
- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म- ताराचंद बड़जात्या
- सर्वश्रेष्ठ कथा- बाण भट्ट
- सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन- गोविन्द मूनिस
- सर्वश्रेष्ठ संगीतकार- लक्ष्मीकांत प्यारेलाल
- सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक- मोहम्मद रफ़ी (चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे)
- सर्वश्रेष्ठ गीतकार- मजरूह सुल्तानपुरी (चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे)
रोचक तथ्य
- यह फ़िल्म संजय ख़ान की पहली फ़िल्म है।
- फ़िल्म में माउथ ऑर्गन का जबरदस्त इस्तेमाल हुआ था और यह आर. डी. बर्मन का कमाल था।
- 1977 में, इस फिल्म को मलयालम और तेलुगु में ‘स्नेहम’ के रूप में रीमेक किया गया था।
- फिल्म की रिलीज़ के साथ ही दोनों सितारे सुशील कुमार और सुधीर कुमार रातोंरात स्टार बन गए, लेकिन इतनी बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्म देने वाले दोनों स्टार्स उसके बाद सिर्फ 1-2 फ़िल्मों में ही नज़र आये।