गंगा जमना / Gunga Jumna (1961)
शैली- एक्शन-ड्रामा-म्यूजिकल (2 घंटे 58 मिनट) रिलीज- 8 दिसंबर, 1961
निर्माता- दिलीप कुमार निर्देशक- नितिन बोस
लेखक- दिलीप कुमार (कथा), वजाहत मिर्ज़ा (संवाद)
गीतकार- शकील बदायूंनी संगीतकार- नौशाद
संपादन– ऋषिकेश मुखर्जी सिनेमैटोग्राफ़ी– वी. बाबासाहेब
मुख्य कलाकार
- दिलीप कुमार – गंगा
- वैजयन्तीमाला – धन्नो
- नासिर ख़ान – जमना
- कन्हैया लाल – कल्लू
- अनवर हुसैन – हरीराम
- अज़रा – कमला
- नासिर हुसैन – पुलिस सुपरर्टेडेंट
- लीला चिटनिस – गोविन्दी
- परवीन पॉल– हरीराम की पत्नी
कथावस्तु
‘गंगा जमुना’ न सिर्फ़ भारतीय समाज का महाकाव्यीय चित्रण करती है, बल्कि समाज के भौतिकवादी विचारबोध को भी सुसंगत क्रम देती है। ‘गंगा-जमुना’ का ही शहरी रीमेक बाद में फ़िल्म ‘दीवार’ के रूप में सामने आया था। उत्तर प्रदेश के हरीपुर गांव में कहानी है दो भाई और एक मां की। बड़ा भाई गंगा (दिलीप कुमार) अपने पिता पर हुए अत्याचारों के खिलाफ़ लड़ने के लिए डाकुओं के समूह में शामिल हो जाता है और छोटे भाई को पढ़ाकर पुलिस में भेजता है लेकिन अपराध करने की वजह से उसका ही छोटा भाई उसके सामने खड़ी हो जाता है। दिलीप कुमार और वैजयंती माला ने इस फ़िल्म में अद्भुत अभिनय किया है।
गीत-संगीत
‘गंगा जमुना’ का प्रसिद्ध गीत “इंसाफ की डगर पे, बच्चो दिखाओ चलके” एक ऐसा गीत था, जिसने नई पीढ़ी को उसके दायित्वों का अहसास कराया था।
- दगाबाज़ तोरी बतियाँ (लता मंगेशकर)
- ढूँढो-ढूँढो रे साजना (लता मंगेशकर)
- दो हंसों का जोड़ा (लता मंगेशकर)
- झनन घूँघर बाजे (लता मंगेशकर)
- नैन लड़ जइयें (मोहम्मद रफ़ी)
- ओ छलिया रे छलिया (मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले)
- तोरा मन बड़ा पापी (आशा भोसले)
- इंसाफ़ की डगर पे (हेमंत कुमार)
सम्मान एवं पुरस्कार
- राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (1961)– सर्वश्रेष्ठ द्वितीय हिन्दी फ़िल्म (उस समय 2 हिन्दी फ़िल्मों को पुरस्कार दिया जाता था।)
- बंगाल फिल्म पत्रकार संघ पुरस्कार- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म, अभिनेता, अभिनेत्री सहित कुल 9 श्रेणियों में पुरस्कार मिले।
- फ़िल्मफेयर पुरस्कार (1962)- कुल 3 पुरस्कार अपनी में झोली में डाले।
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री- वैजयंतीमाला
- सर्वश्रेष्ठ संवाद- वजाहत मिर्ज़ा
- सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफ़ी- वी. बाबासाहेब
रोचक तथ्य
- केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) ने इस फ़िल्म को हिन्दी में दर्शाया परन्तु इस फ़िल्म में अवधी भाषा का अत्यन्त प्रयोग हुआ।
- गंगा-जमना की बेतहाशा लोकप्रियता के कारण ही 1975 में ‘दीवार’ जैसी क्लासिक फ़िल्म बनकर तैयार हुई।