15/05/2024

किस्मत (1943)

किस्मत / Kismet (1943)

शैली- ड्रामा (2 घंटे 23 मिनट) रिलीज- 9 जनवरी, 1943

निर्माता- बॉम्बे टॉकीज निर्देशक- ज्ञान मुखर्जी

लेखक- अग़ा जानी कश्मीरी पटकथा- ज्ञान मुखर्जी

संपादन– दत्ताराम पाई  सिनेमैटोग्राफ़ी– आर. डी. परिंजा

मुख्य कलाकार- अशोक कुमार, मुमताज़ शान्ति, शाह नवाज, मोती, कनु रॉय, डेविड आदि

कथावस्तु

बॉम्बे टॉकीज़ द्वारा निर्मित यह फ़िल्म कई मायनों में हिन्दी फ़िल्मों के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इस फ़िल्म में पहली बार एक एण्टी हीरो दर्शकों के सामने आया था जिसे युवावर्ग ने बेहद पसंद किया। अशोक कुमार ने इसमें एक अपराधी नायक की भूमिका बख़ूबी निभाई थी। फ़िल्म में पहली बार उनका डबल रोल था। निर्देशक ज्ञान मुखर्जी ने बचपन में बिछड़े परिवार के सदस्यों का बड़े होकर नाटकीय परिस्थितियों में मिलने का जो फ़ॉर्मूला ईजाद किया वह आगे चल कर ढेरों फ़िल्मों में अपनाया गया। बी.आर. चोपड़ा द्वारा निर्मित क्लासिक फ़िल्म वक्त (1965) भी इसका ही एक रूप था। निर्देशक ज्ञान मुखर्जी ने मानव ‘मनोविज्ञान’ के तारों को संतुलित प्रस्तुति से स्पर्श किया है। किस्मत की ‘तकदीर’ विचारधारा को ‘पलायनवाद’ की ओर नहीं ले जाती है, यहां तकदीर को परिस्थितियों एवं घटनाओं के प्रकाश में रखा गया है। भाग्य को ‘संयोग’ का प्रतिरूप मानते हुए फिल्म संदेश देती है ‘किस्मत कभी हंसाए, कभी रूलाए’ इसलिए कर्म मार्ग पर चलें।

गीत-संगीत

संगीतकार अनिल बिस्वास और गीतकार कवि प्रदीप की जोड़ी ने अमर गीतों का सृजन किया। सब गीतों से बढ़ कर कवि प्रदीप की अमर रचना जिसने ग़ुलाम हिन्दुस्तान में आज़ादी के लिये नारा बुलन्द किया था– ‘दूर हटो ऐ दुनियावालो हिन्दुस्तान हमारा है’। वह समय द्वितीय विश्वयुद्ध का था जिसमें ब्रिटिश फ़ौज, जर्मन और जापान के ख़िलाफ़ जंग लड़ रही थी। उस परिस्थिति की आड़ ले कवि प्रदीप ने ब्रिटिश सेंसर को बहला कर अपना गीत पास करवा लिया था।

  1. दूर हटो ऐ दुनियावालो (अमीरबाई कर्नाटकी, ख़ान मस्ताना)
  2. अब तेरे सिवा कौन मेरा कृष्ण कन्हैया (अमीरबाई कर्नाटकी)
  3. ऐ दुनिया बता- घर घर में दीवाली है (अमीरबाई कर्नाटकी)
  4. धीरे धीरे आ रे बादल (अमीरबाई कर्नाटकी)
  5. धीरे धीरे आ रे बादल (अमीरबाई कर्नाटकी, अशोक कुमार)
  6. हम ऐसी किस्मत को, एक दिन हंसाये (अमीरबाई कर्नाटकी, अरुण कुमार)
  7. पपीहा रे मेरे पिया से कहियो जाय (पारुल घोष)
  8. तेरे दुख के दिन फिरेंगे, ज़िंन्दगी बन के जिये जा (अरुण कुमार)

समीक्षा

कथा, अभिनय, चरित्र-चित्रण, संगीत के घटकों से हिन्दी सिनेमा की लोकप्रिय फिल्म ‘किस्मत’ निकलकर आई है। लोकप्रिय इसलिए क्योंकि बड़े जनसमूह ने देखा और उसकी सराहना की। नतीजतन टिकट खिड़की पर रिकॉर्ड प्रदर्शन किया जो आज भी एक विशेष उपलब्धि है। कथा को ‘तकदीर’ के मनोवैज्ञानिक जज़्बात में पिरोया गया, वही सम्प्रेषण की थीम भी है। सन् चालीस के लिहाज़ से ‘कथानक’ समय से काफी आगे है, आज सिनेमा में यह थीम भले ही बेगानी हो चली हो लेकिन ‘तकदीर’ का गम आज भी आमजन को उतना ही सता रहा जितना साठ-पैंसठ बरस पहले। प्रशंसा करनी होगी ज्ञान मुखर्जी के विजन की जिससे एक ‘दूरगामी’ थीम निकलकर आई।

किस्मत में नेगेटिव हीरो ‘शेखर’ और आदर्शवादी नायिका ‘रानी देवी’ में चरित्रों का सुंदर विभेद गढ़ा गया है। शेखर का अवगुण रानी के सदगुण से अभिप्रेरित होकर सदगुण बन जाता है। किन्तु शेखर का मूल चरित्र भी पूरी तरह से ‘नकारात्मक’ प्रवृति की ओर नहीं झुका है, शेखर से पहले भला किसने एक नेकदिल, शरीफ, संवेदनशील चोर के बारे में सोचा होगा? यह सामाजिक पूर्वाग्रहों पर प्रभावशाली प्रहार था। हिन्दी सिनेमा का ‘शेखर’ शायद इसलिए ‘मील का पत्थर’ कहा जा सकता है।

अमिताभ बच्चन (परवाना), विनोद खन्ना (दयावान), शाहरुख ख़ान (बाज़ीगर) जैसे नायकों की छवियों में ‘नेगेटिव’ नायक की पुनरावृत्ति हुई। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सिनेमा में ‘शेखर’ के मिज़ाज का पात्र वर्षों बाद क्यों प्रासंगिक बना हुआ है। इस संदर्भ में फिल्म की रिकॉर्ड कामयाबी का एक सूत्र समझ में आता है।

रोचक तथ्य

  • कलकत्ता के रॉक्सी थियेटर में यह लगातार तीन वर्ष तक चलती रही और बॉक्स ऑफ़िस पर कमाई के इसने नये कीर्तिमान गढ़े। यह अपने समय की सबसे अधिक कमाई करने वाली फ़िल्म रही।
  • किस्मत बॉलीवुड की पहली ब्लॉकबस्टर फ़िल्म थी।
  • इस फ़िल्म के संगीतकार ने पहली बार गीतों के गायन में कोरस का प्रयोग किया था।
  • इस फिल्म ने भारतीय सिनेमा को पहला सुपरस्टार अशोक कुमार के रूप में दिया।

Loading

संपर्क | अस्वीकरण | गोपनीयता नीति | © सर्वाधिकार सुरक्षित 2019 | BollywoodKhazana.in
Optimized by Optimole