प्यासा / Pyaasa (1957)
शैली- ड्रामा-म्यूजिकल-रोमांस (2 घंटे 26 मिनट) रिलीज- 19 फ़रवरी, 1957
निर्माता/निर्देशक- गुरु दत्त
लेखक- अबरार अल्वी
संपादन– वाई.जी. चव्हण सिनेमैटोग्राफ़ी– वी.के. मूर्ति
मुख्य कलाकार- गुरु दत्त, माला सिन्हा, वहीदा रहमान, रहमान, जॉनी वॉकर, कुमकुम, लीला मिश्रा, महमूद, टुनटुन आदि
कथावस्तु
विजय (गुरु दत्त) एक असफल कवि है जो जिसका कार्य प्रकाशक अथवा उसके भाई (जो उसकी कविताओं को बेकार के कागजों में बेचते हैं) गम्भीरता से नहीं लेते। वह निकम्मा होने के ताने नहीं सुन सकने के कारण घर से बाहर रहता है और गली-गली मारा-मारा घूमता रहता है। उसे गुलाबो (वहीदा रहमान) नामक एक अच्छे दिल की वैश्या से मिलती है जो उसकी कविताओं से बेहद प्रभावित है और उससे प्रेम करने लग जाती है। एक दिन विजय की मुलाकात उसकी कॉलेज की पूर्व प्रेमिका मीना (माला सिन्हा) से होती है और उसे पता चलता है कि उसने वित्तीय सुरक्षा के लिए एक बड़े प्रकाशक मिस्टर घोष (रहमान) के साथ विवाह कर लिया है। परन्तु वह अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं है और वापस विजय के जीवन में आना चाहती है, परन्तु विजय को मंज़ूर नहीं।
दूसरी ओर विजय को एक दुर्घटना में चोट लगती है और वह एक संयोगवश मृत समझ लिया जाता है। गुलाबो अपने कुछ अन्य प्रभावशाली परिचितों की सहायता से विजय की रचनाएं प्रकाशित करा देती है। ये कविताएं घोष इस आशा से प्रकाशित करता है कि वह विजय की मृत्यु से उपजी सहानुभूति का लाभ उठाकर धन कमा लेगा पर उसके भाई (महमूद) घोष के पास जाते हैं और वो पैसा हथियाने के लिए प्रयास करते हैं परन्तु विजय जीवित है और उसका इलाज एक मानसिक रोग अस्पताल में चल रहा है। एक दिन नर्स से अपनी ही प्रकाशित रचना सुन कर तथा अपनी प्रसिद्धि का समाचार जान कर विजय सामान्य हो जाता है। परन्तु अब कोई उसका विश्वास नहीं करता तथा उसको पागलों वाले कमरे में ही रखा जाता है।
गीत-संगीत
फ़िल्म में गीत-संगीत बेहतरीन है और फ़िल्म की विषयवस्तु पर सही बैठता है। एस. डी. बर्मन का संगीत तथा मोहम्मद रफ़ी के गाये कुछ गीत आज भी उतने ही पसंद किये जाते हैं। फ़िल्म के सभी गीत साहिर लुधियानवी ने लिखे हैं।
- “आज साजन मोहे अंग लगा लो” (गीता दत्त)
- “हम आपकी आँखों में” (गीता दत्त, मोहम्मद रफ़ी)
- “जाने क्या तूने कही” (गीता दत्त)
- “जाने वो कैसे लोग” (हेमन्त कुमार)
- “सर जो तेरा चकराये” (मोहम्मद रफ़ी)
- “ये दुनिया अगर मिल भी जाये” (मोहम्मद रफ़ी)
- “ये हँसते हुये फूल” (मोहम्मद रफ़ी)
- “जिन्हें नाज़ है हिन्द पर” (मोहम्मद रफ़ी)
- “तंग आ चुके हैं कश-मकश-ए ज़िन्दगी से हम” (मोहम्मद रफ़ी)
सम्मान एवं पुरस्कार
- विश्व प्रसिद्ध पत्रिका टाइम की वेबसाइट ने 10 सर्वश्रेष्ठ रोमांटिक फ़िल्मों की एक सूची पेश की है। जिसमें ‘प्यासा’ को शीर्ष पांच फ़िल्मों में स्थान दिया गया है। इसके पहले टाइम पत्रिका ने वर्ष 2005 में भी ‘प्यासा’ को सर्वश्रेष्ठ 100 फ़िल्मों में शामिल किया था। टाइम की सूची में पहले स्थान पर ‘सन ऑफ द शेख’ (1926), दूसरे पर ‘डॉड्सवर्थ’ (1939), तीसरे पर ‘कैमिली’ (1939), चौथे पर ‘एन एफे़यर टू रिमेम्बर’ (1957) और पांचवे स्थान पर ‘प्यासा’ (1957) को रखा गया है।
रोचक तथ्य
- एक धीमी शुरुआत के बाद फ़िल्म सफल रही। विडंबना ही कही जाएगी कि गुरु दत्त के जीवन काल में तो नहीं परन्तु उनके बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत सराहना मिली। फ्रांस, जर्मनी में फ़िल्म बहुत पसंद की गयी। फ्रेंच प्रीमियर में इसका शो हुआ, तद्पश्चात् नौवें अंतर्राष्ट्रीय एशियन फ़िल्म फेस्टिवल में भी इसको प्रदर्शित किया गया।
- टाइम्स रीडर्स ने इसको सर्वकालिक टॉप-10 फ़िल्मों में सम्मिलित किया। आज भी इस फ़िल्म को पसंद करने वाले दर्शक हैं।
- व्यवसायिक दृष्टिकोण से कुछ सफल फ़िल्में बनाने के बाद गुरुदत्त कुछ फ़िल्में अपनी रुचि के अनुसार बनाना चाहते थे, जो उनके मन को सुकून दे सके। इनमें से ही एक फ़िल्म प्यासा थी।
- प्यासा फ़िल्म की कहानी हिमाचल के एक असफल कवि चन्द्रशेखर प्रेम की अपनी कहानी है जिसको अपनी रचना को बम्बई जाकर बेचनी पडी। उसने उर्दू हिंदी में बहुत सी किताबें लिखी परन्तु उनके लिए वह कभी प्रसिद्ध न हो सका।
- फ़िल्म का अंत परिस्तिथियों से समझौता कर किया जाय या नहीं इस पर भी बहुत विचार विमर्श हुआ। अंत में फ़िल्म का अंत गुरुदत्त ने अपनी पसंद से किया।
- अपनी इस विख्यात फ़िल्म के लिए गुरु दत्त ट्रेजेडी किंग दिलीप कुमार (Dilip Kumar) को लेना चाहते थे परन्तु उनके मना करने पर उन्होंने स्वयं इस किरदार को निभाया।