साहिब बीबी और ग़ुलाम / Sahib Bibi Aur Ghulam (1962)
शैली- ड्रामा-म्यूजिकल (2 घंटे 32 मिनट) रिलीज- 29 जुलाई, 1962
निर्माता- गुरु दत्त निर्देशक- अबरार अल्वी
पटकथा/लेखक- अबरार अल्वी, बिमल मित्र
गीतकार- शकील बदायूंनी संगीतकार- हेमंत कुमार
संपादन– वाई.जे. चव्हण सिनेमैटोग्राफ़ी– वी.के. मूर्ति
मुख्य कलाकार
- मीना कुमारी – छोटी बहू
- गुरु दत्त – अतुल्य चक्रवर्ती उर्फ़ भूतनाथ
- रहमान – छोटे बाबू
- वहीदा रहमान – जबा
- नज़ीर हुसैन – सुबिनय बाबू
- धूमल – बंसी
- प्रतिमा देवी – बड़ी बहू
- बिमला कुमारी – चुन्नीदासी
- डी के सप्रू – मंझले बाबू
कथावस्तु
इसकी कहानी भूतनाथ (गुरु दत्त) के इर्द गिर्द घूमती है, जो एक पुरानी हवेली को देख कर अपने पिछले दिनों को याद करने लगता है। उस समय में जब भूतनाथ एक चौधरी साहब की हवेली में रहता था। एक दिन भूतनाथ को हवेली की छोटी बहू (मीना कुमारी) बुलाती है, जिनके पति उन पर ध्यान ना देकर बाहर मुजरों एवं नशे में ही समय बिताते हैं। हताश छोटी बहू और भूतनाथ की बात जो मोहिनी सिंदूर से शुरू होती है और आने वाले समय में एक अजीब से रिश्ते में बदल जाती है। दूसरी और भूतनाथ एवं उसके मालिक की बेटी जबा (वहीदा रहमान) का रिश्ता हेमंत कुमार के संगीत के ज़रिये आपको प्यार से रूबरू कराएगा। कहानी में मोड़ तब आता है, जब भूतनाथ काम के सिलसिले में हवेली छोड़ कर चला जाता है।
गीत-संगीत
साहिब बीबी और ग़ुलाम के संगीतकार हेमन्त कुमार और सभी गीतों के गीतकार शकील बदायूँनी हैं। गुरु दत्त की पत्नी गीता दत्त द्वारा गाया हुआ गाना ‘ना जाओं सैंया छुड़ा के बैंया’ बहुत लोकप्रिय हुआ जो आज भी सुनने को मिलता है।
- चले आओ (गीता दत्त)
- मेरी जान ओ मेरी जान (आशा भोसले)
- भंवरा बड़ा नादान हाय (आशा भोसले)
- साक़िया आज मुझे नींद नहीं आयेगी (आशा भोसले)
- पिया ऐसो जिया में (गीता दत्त)
- मेरी बात रही मेरे मन में (आशा भोसले)
- ना जाओ सैंया छुड़ा के बैंया (गीता दत्त)
- साहिल की तरफ़ कश्ती ले चल (हेमन्त कुमार)
सम्मान एवं पुरस्कार
- राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार (1962)- राष्ट्रपति द्वारा रजत पदक हिंदी में सर्वश्रेष्ठ फ़ीचर फिल्म के लिए।
- बर्लिन फ़िल्म फेस्टीवल (1963) में नामित।
- फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (1963)- कुल 4 पुरस्कार अपनी झोली में डाले।
- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म- गुरु दत्त
- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक- अबरार अल्वी
- सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री- मीना कुमारी
- सर्वश्रेष्ठ सिनेमैटोग्राफ़ी- वी. के. मूर्ति
रोचक तथ्य
- ‘काग़ज़ के फूल’ के बाद गुरु दत्त ने यह फैसला लिया था कि वह अब कभी भी कोई फ़िल्म का निर्देशन नहीं करेंगे और यही वजह थी कि इस फ़िल्म का निर्देशन उनके लेखक दोस्त अबरार अल्वी ने किया था। गुरु दत्त ने पहले इस फ़िल्म को निर्देशित करने के लिए सत्येन बोस और फिर नितिन बोस से बात की, लेकिन जवाब न मिलने पर अबरार अल्वी को निर्देशित करने के लिए दी गई।
- गुरु दत्त चाहते थे कि भूतनाथ का किरदार शशि कपूर (Shashi Kapoor) निभायें लेकिन समय न होने के कारण शशि कपूर ने मना कर दिया और गुरु दत्त को ही यह किरदार निभाना पड़ा।
- वहीदा रहमान छोटी बहू का रोल चाहती थीं लेकिन गुरु दत्त ने उनकी कम उम्र को देखते हुए मना कर दिया। फिर वहीदा ने अबरार अल्वी से कहकर अपने लिए इस फ़िल्म में रोल लिखवाया और फ़िल्म का हिस्सा बनीं।