उपकार / Upkar (1967)
शैली- ड्रामा-रोमांस-वॉर (2 घंटे 55 मिनट) रिलीज- 11 अगस्त, 1967
निर्माता- हरकिशन आर. मीरचंदानी, आर. ऍन. गोस्वामी
लेखक/निर्देशक- मनोज कुमार संगीतकार- कल्याणजी-आनन्दजी
गीतकार- क़मर जलालाबादी, इंदीवर, प्रेम धवन, गुलशन बावरा
संपादन– बी. ऍस. ग्लाड सिनेमैटोग्राफ़ी– वी एन रेड्डी
मुख्य कलाकार
- मनोज कुमार – भारत
- आशा पारेख – डॉ॰ कविता
- कामिनी कौशल – राधा
- प्रेम चोपड़ा – पूरन
- कन्हैया लाल – लाला धनीराम
- प्राण – मलंग चाचा
- डेविड अब्राहम – फ़ौज में मेजर
- मनमोहन कृष्णा – चौधरी कृष्णा (गाँव का एक किसान)
- मदन पुरी – चरणदास
- अरुणा ईरानी – कमली (चौधरी कृष्णा की लड़की)
- असित सेन – लखपति (लाला धनीराम का मुनीम)
- मोहन चोटी – मंगल (गाँव का एक लड़का)
कथावस्तु
फिल्म की कहानी राधा (कामिनी कौशल) और उसके दो पुत्रों भारत (मनोज कुमार) व पूरन (प्रेम चोपड़ा) की कहानी है। कहानी शुरू होती है हरियाणा के गांव अटाली से, राधा ग्रामीण महिला है जो अपने परिवार को खुशहाल देखना चाहती है। उसकी इच्छा अपने पुत्रों को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाने की है परन्तु वह दोनों की पढ़ाई का भार वहन नहीं कर पाती है। भारत ख़ुद की पढ़ाई रोक कर पूरन को पढ़ने के लिए शहर भेजता है। पूरन जब शिक्षा पूरी करके वापस आता है तो उसे आसान पैसा कमाकर खाने की आदत पड़ जाती है और इसमें उसका भागीदार होता है चरणदास (मदन पुरी), जो उसके परिवार में फूट डालने का कार्य भी करता है। चरणदास वही था जिसने उनके पिता को मारा था। चरणदास आग में घी का काम करता है और पूरन को जायदाद के बँटवारे के लिए उकसाता है। पापों की गर्त तले धँसा पूरन जायदाद के बँटवारे की माँग करता है। भारत स्वेच्छा से सारी सम्पत्ति छोड़ कर भारत-पाक युद्ध में लड़ने चला जाता है, जबकि पूरन एक ओर तो अनाज की कालाबाजारी तथा तस्करी का धंधा करता है और दूसरी ओर सीधे सादे गाँव वालों को मूर्ख बनाता है। लड़ाई में भारत दुश्मन के हाथों ज़ख़्मी हो जाता है और पकड़ा जाता है लेकिन किसी तरह दुश्मन को चकमा देकर अपने गाँव की तरफ़ ज़ख़्मी हालत में है निकल पड़ता है। रास्ते में चरणदास ज़ख़्मी भारत को मारने का षड्यंत्र रचता है, परन्तु मलंग चाचा (प्राण), जो कि विकलांग है, उसको बचा लेता है और ख़ुद घायल हो जाता है। घायल भारत और मलंग चाचा को बचाने में डॉक्टर कविता (आशा पारेख) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उधर पूरन को भी गिरफ़्तार कर लिया जाता है। उसको अपनी ग़लती का अहसास हो जाता है और वह गोरख धंधा करने वालों को पकड़वाने में सरकार की सहायता करता है।
गीत-संगीत
इस फ़िल्म के संगीतकार कल्याणजी-आनन्दजी हैं और गीतकार गुलशन बावरा, इन्दीवर, प्रेम धवन एवं क़मर जलालाबादी हैं।
क्रमांक | गीत | गायक/गायिका | गीतकार |
1 | आई झूमके बसन्त | आशा भोंसले, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर | प्रेम धवन |
2 | दीवानों से ये मत पूछो | मुकेश | क़मर जलालाबादी |
3 | गुलाबी रात गुलाबी | आशा भोंसले | इन्दीवर |
4 | हर ख़ुशी हो वहाँ | लता मंगेशकर | गुलशन बावरा |
5 | कसमें वादे प्यार वफ़ा | मन्ना डे | इन्दीवर |
6 | मेरे देश की धरती | महेन्द्र कपूर | गुलशन बावरा |
7 | ये काली रात काली | मोहम्मद रफ़ी | इन्दीवर |
सम्मान एवं पुरस्कार
- राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1968)-
- दूसरी सबसे अच्छी फ़िचर फ़िल्म (हिन्दी) – हरकिशन आर. मीरचंदानी
- सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार – महेन्द्र कपूर (‘मेरे देश की धरती ‘ गीत के लिए)
- फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार (1968)-
- सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार – हरकिशन आर. मीरचंदानी
- सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार – मनोज कुमार
- सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार – प्राण
- सर्वश्रेष्ठ कथा पुरस्कार – मनोज कुमार
- सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखन पुरस्कार – मनोज कुमार
- सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार – गुलशन बावरा (मेरे देश की धरती गीत के लिए)
रोचक तथ्य
- 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बैकड्रॉप पर बनी इस फिल्म ने उस साल सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के सुझाव पर मनोज कुमार ने किसान और जवान को लेकर फिल्म बनाई थी और यह निर्देशक के तौर पर यह उनकी पहली फिल्म थी।
- यही वह फिल्म है, जिसने मनोज कुमार को ‘भारत कुमार’ का नाम दिया।
- 15 अगस्त और 26 जनवरी पर खासतौर पर इस फिल्म के गाने आज भी बजते हैं। फिल्म का गाना ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती…’ तो हर जुबां पर चढ़ा हुआ है।