29/05/2024

फ़िल्म समीक्षा: गंगूबाई काठियावाड़ी

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फ़िल्म ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ एस हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वींस ऑफ मुंबई’ से प्रेरित है। कहानी रोचक है जो कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाती है।

गंगूबाई काठियावाड़ी की कहानी

कहानी 50 के दशक में सेट है। गुजरात के निकट काठियावाड़ की गंगा (आलिया भट्ट) हीरोइन बनने के लिए अपने प्रेमी के साथ भाग कर बम्बई आ जाती है। जहाँ उसे पता चलता है कि उसके प्रेमी ने उसे 1000 रुपये में एक वैश्यालय में बेच दिया है। इस वैश्यालय की घरवाली (हैड) है शीला यानि सीमा पाह्वा जो आलिया को यहाँ के कायदे कानून सिखाती है। पहले ग्राहक के बाद आलिया अपना नाम गंगा से गंगूबाई रख लेती है और यहीं से शुरु होती उसके गंगूबाई काठियावाड़ी बनने की कहानी जो एक साधारण सी लड़की के माफिया क्वीन और सामाजिक कार्यकर्ता बनने के सफर को दिखाती है। मुझे लगता है कि इससे ज्यादा कहानी नहीं बतानी चाहिये किसी समीक्षक को, क्योंकि कहानी पूरी जानने के बाद फ़िल्म देखने का मज़ा कम हो जाता है और कहीं न कहीं हम निर्देशक और लेखक के रचनात्मक दृष्टिकोण में बाधा पहुंचाते हैं।

गंगूबाई काठियावाड़ी की समीक्षा

चूंकि मैं क्रिकेट का शौकीन हूँ इसलिए इस फ़िल्म की समीक्षा में क्रिकेट की भाषा का प्रयोग करुंगा। वैसे भी मुझे ये पूरी फ़िल्म एक बेहतरीन टी-20 मैच जैसी लगी। ऐसा लगा जैसे कोई संजू सैमसन (आलिया भट्ट) जैसा प्रतिभाशाली बल्लेबाज़ अपनी प्रतिभा का जलवा अपने से कहीं सीनियर्स के आगे कर रहा हो। मेरे हिसाब से आलिया भट्ट ने पूरी फ़िल्म (मैच) में ओपनिंग से लेकर पारी के अंत तक बेहतरीन बल्लेबाजी (अभिनय) कर एक नॉट-आउट सेंचुरी मारी है। बीच बीच में सीमा पाह्वा, विजय राज आदि के कुछ बेहतरीन बाउंसर जैसे ओवर्स भी पड़े जिनमें उन्होंने आलिया पर हावी होने की कोशिश की लेकिन वे आलिया को आउट नहीं कर सके। आलिया के साथ ही अजय देवगन, जिम सार्भ, शांतनु माहेश्वरी ने भी बेहतरीन कैमियो प्रदर्शन किया जिससे पूरे मैच (फ़िल्म) का मज़ा लगातार बना रहता है और जब मैच (फ़िल्म) के अंत में आलिया, प्रधानमंत्री नेहरू जी से मिलती है तो ऐसा लगता है जैसे ‘प्लेयर ऑफ़ द मैच’ का अवार्ड भी जीत लिया हो।

संजय लीला भंसाली और उत्कर्षिनी वशिष्ठ की पटकथा मनोरंजक लगी। गंगूबाई का किरदार बहुत अच्छी तरह से तैयार किया गया है और सहायक कलाकारों से बेहतरीन सपोर्ट मिला है। फ़िल्म के कई सीन्स में ऐसे कई दमदार वन लाइनर्स हैं जो फ़िल्म को यादगार बनाते हैं। आलिया भट्ट को शशांक माहेश्वरी के सफेद साड़ी दिखाने वाला सीन मेरा पसंदीदा सीन है। अब चूंकि गंगूबाई के एक गुजराती चरित्र है इसलिए फ़िल्म कहीं-कहीं संजय लीला भंसाली की ही फ़िल्म ‘राम-लीला’ से मिलती है। आलिया भट्ट का अभिनय शानदार है जो शायद उनका अब तक का सबसे बेहतरीन अभिनय कहा जा सकता है। फ़िल्म का ट्रेलर देखने के बाद मुझे भी लगा था कि इस रोल के लिए विद्या बालन जैसी सशक्त अभिनेत्री होनी चाहिये थी लेकिन फ़िल्म देखने के बाद आलिया ने अपने उन सभी आलोचकों के मुँह पर टेप लगा दिया है जिन्होंने आलिया भट्ट को नेपोटिज्म का टैग दिया है।

देखें या न देखें

मुझे यह फ़िल्म मौलिक स्तर पर अच्छी लगी क्योंकि भले ही इसमें कुछ नयेपन की कमी हो लेकिन कुछ भी नकल किया हुआ नहीं लगता। और हाँ, फ़िल्म का सब्जेक्ट भले ही एडल्ट है लेकिन पूरी फ़िल्म में एक भी ऐसा सीन नहीं जिसे देखकर आपको शर्मिदा होना पड़े। यदि आपने ये फ़िल्म अब तक नहीं देखी है तो देख सकते हैं। आपका कीमती समय और पैसा बेकार नहीं जायेगा। ~गोविन्द परिहार (11.05.22)

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